शुक्रवार, 19 जुलाई 2013

बदहाल सरकारी शिक्षण प्रणाली

मुझे पता है मेरे कुछ लिखने से क्रांति नहीं आने वाली है या फिलहाल कोई बहुत बड़ा परिवर्तन नहीं आने वाला है ,लेकिन मेरा एक बहुत बेसिक सा सवाल है कि सरकारी स्कूलों में पढाई क्यों नहीं होती ? आखिर क्या वजह है की योग्य शिक्षक भी पढ़ाने से कतराते हैं ? और वही शिक्षक जब चंद पैसों के लिए उन्हीं बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते हैं,तो वहाँ बहुत मन से पढ़ाते हैं। ऐसा भी नहीं है कि उन्हें बहुत कम पैसे मिलते हैं (नियोजित शिक्षक को छोड़कर) , कईयों को लगभग 30000 से 40000 रु तक  मासिक तनख्वाह मिलती है तो आखिर वे पढ़ातेे क्यों नहीं ?
             क्यों हमे अच्छी शिक्षा के लिए निजी विद्यालयों का मुंह ताकना पड़ता है? उनके मन माने फ़ीस को भरना पड़ता है। सरकार 2015 तक देश की 80 फीसदी आबादी को शिक्षित करना चाहती है। पर कैसे ? गरीब बच्चे फिर उन्हीं सरकारी विद्यालयों में जायेंगे ,मिड डे मिल खा कर मरेंगे ,और जो बच गये उन्हें वे सरकारी शिक्षक कैसी शिक्षा देंगे। क्या सरकार सिर्फ साक्षर बच्चो के प्रतिशत की खाना पूर्ति करना चाहती है। आखिर गरीब बच्चो को अच्छी शिक्षा पाने का हक क्यों नही है,सिर्फ इसलिए कि उनके पास महंगे निजी विद्यालयों में पढने के पैसे नहीं है। अरे, मै सरकारी विद्यालय में फाइव स्टार होटलों(महंगे निजी विद्यालय) जैसी सुविधा की बात नहीं कर रहा हूँ। मै बस बेसिक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात कर रहा हूँ ,ये अधिकार गरीब बच्चों को कौन दिलाएगा ? क्या सरकार का लक्ष्य बच्चो को सिर्फ साक्षर करने का होना चाहिये या अच्छी गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा। कई जगह पर इतनी घटिया पढाई होती है कि आप कल्पना नहीं कर सकते ।देश में अच्छे साइंटिस्ट नहीं है ,अच्छे डॉक्टर नहीं है ,देश में रिसर्च की स्तिथि दयनीय है। इसके लिए कौन जिम्मेदार है। बड़े घर के यो- यो कल्चर वाले बच्चे यदि डॉक्टर ,इंजिनियर ,साइंटिस्ट बनते भी है ,तो वो विदेश को तरहिज देते हैं। और अधिकाँश गरीब बच्चों को वैसी शिक्षा मिल ही नहीं पाती ,जिससे वे यहाँ तक पहुंचे। एकाध जो पहुँच भी जाते हैं ,वे खुद केे मेहनत और लम्ब  संघर्षों के बाद पहुँच पाते हैं। खैर ,बुनियादी स्तर पर जब ये हाल है ,तो विश्वविद्यालयों की बात करना भी बैमानी है। फिर भी जो गिने चुने विश्वविद्यालय हैं ,वहां भी गरीब ,शोषित कितने बच्चे आ पाते हैं ,ये सबको पता है। वैसे भी जब बच्चो को सही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिली है तो वो विश्वविद्यालय तक कहाँ से आ पाएंगे?और अगर आ भी गये ,तो विश्व स्तरीय विश्विद्यालय कहाँ है हमारे पास। हाल के ही सर्वे में ये बात सामने आई है कि विश्व के शीर्ष 200 विश्विद्यालय में भारत का एक भी विश्विद्यालय शामिल नहीं है। इससे ज्यादा और शर्म की बात और क्या हो सकती है।
                    ऐसी शिक्षा पद्धति से हम किस और जा रहे हैं? क्या सिर्फ निजी विद्यालय के बच्चों को ही डॉक्टर ,इंजिनियर बनने का अधिकार है? सरकार देश के हर बच्चे को शिक्षित करना चाहती है ,पर कैसी शिक्षा देकर ।। मै ,उस दिन बहुत खुश होऊंगा ,जब उसी सरकारी स्कुल के शिक्षक अपने बच्चे को भी ख़ुशी ख़ुशी अपने ही स्कुल में शिक्षा देंगे। उसी दिन समानता आएगी ,उसी समय से देश भी खुशहाली के पथ पर आगे बढेगा।
राहुल आनंद े

1 टिप्पणी:

  1. वर्तमान शिक्षा प्रणाली में बच्चे, किशोर और युवा अच्छे इंसान नहीं बनते ये प्रणाली तो इन्हें मशीने बना रही है।

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