सोमवार, 20 अगस्त 2012

रामदेव की राजनीति

      हमारे देश मे सदियों से हर राजाओ के अपने राजनितिक गुरु रहे हैं जो हमेशा उनका मार्गदर्शन करते रहे हैं . वे वनों, कंदराओ मे रहते थे और एकांतवास पसंद करते थे . सबसे बड़ी बात की वे उच्च कोटि के तपस्वी और ज्ञानी होते थे , उनकी दूरदर्शिता से राजा  और प्रजा को बहुत फायदा होता था .
                                                                                   
     दूसरी तरफ हमारे बाबा रामदेव हैं , निःसंदेह उन्होंने योग को भारत के घर-घर तक पंहुचा दिया है ,यह उनकी बहुत बड़ी उपलब्धि है .  योग, व्यायाम हमारे संस्कृति का हिस्सा रहा  है परन्तु जिस स्तर पर योग गुरु ने इसे लोकप्रिय बनाया,यह काबिलेतारीफ है.हालांकि इससे उन्होंने बहुत सरे पैसे भी कमाएं हैं जो उनके भव्य पंडालो की रौनक और  व्यवस्था को देख कर अनुमान लगाया जा सकता है .    
                  
       यहाँ तक तो ठीक था ,परंतु अब जो बाबा कर रहे हैं वह कहाँ तक तर्कसंगत है ??? बाबा तो सीधे तौर पर  कहते हैं की उनका राजनीति से कुछ लेना देना नही है परन्तु आन्दोलन के दौरान विपक्षी पार्टीयों का उनके मंच पर आना क्या था??? शरद यादव ,नितिन गडकरी का उन्हें हर मोर्चे पर साथ देने का वादा  करना क्या था ??? या तो भाजपा को बाबा की जरुरत है या बाबा को भाजपा की जरुरत है या फिर दोनो  को एक दुसरे की जरूरत है.
   
      बाबा विदेशो से काला धन लाने के मुद्दे पे कितने गंभीर हैं ,इसकी मंशा पर भी सवाल उठते है. पिछली बार उनका एक ही मुद्दा था विदेशो से काला धन वापस लाना  पर जैसे ही टीम अन्ना भंग हुई उन्होंने लोकपाल के  साथ साथ अन्य मुद्दे भी शामिल  कर लिए.  एक राजनीतिक पार्टी की तरह ही उनके आन्दोलन का चरित्र भी बदलता गया .
   
       मुझे ये समझ नहीं आता की चाहे अन्ना हो या रामदेव किसी एक मुद्दे को ले कर गंभीर क्यों नहीं थे हर बार नए नए एजेंडे को जोड़ने से लोगो मे भ्रम की स्थिति पैदा हुई और आन्दोलन बिखर सा गया.

       सबसे बड़ा सवाल यह है की लोकतंत्र मे सबको अपनी बात रखने का और विरोध जताने का अधिकार है, इसके बावजूद हमें अपना विरोध दर्शाने के  लिए रामदेव और अन्ना की जरूरत क्यों पड़ती है???

        या तो हमारे लोकतान्त्रिक प्रक्रिया मे दोष है या तो सरकार अपने दायित्वों को ले कर गंभीर नहीं है.
        
         हालाँकि इस बार अन्ना के  अन्दोलन मे लोग कम आये परन्तु रामदेव के आन्दोलन मे लोग शुरुआत से ही आ रहे थे. बहुत सारे लोग कहते है की वे तो रामदेव के  समर्थक है , पर क्या वे हमारे देश के नागरिक नहीं है ??? इतने बड़े जनमानस का किसी एक आदमी,विचारधारा से जुड़ जाना और विरोध प्रदर्शन करना निश्चय ही सरकार की अक्षमता को दर्शाता है.

          बाबा मे निसंदेह ही भीड़ जुटाने की क्षमता है तो क्या उनको मिल रहा व्यापक समर्थन उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को बढ़ा रहा है या यह उनका पूर्वनियोजित एजेंडा है ???

          दूसरी ओर रामदेव को समर्थन देने मे भाजपा का अपना राजनीतिक स्वार्थ है . कांग्रेस के बहुत सारे मुद्दे पर कमजोर हो जाने पर भी भाजपा इसका व्यापक फायदा नहीं उठा पाई , जिस कारण भाजपा रामदेव से जुड़ कर अपने वोटरों की संख्या बढ़ाना चाहती है .

           राजनीति करने के लिए तीन चीजो की जरूरत होती है- पैसा ,पॉवर और समर्थन. संयोग से तीनो ही बाबा के पास है . उन्होंने बड़े पैमाने पे काला धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ जागरूकता फैलाई है, परुन्तु क्या इन सब के पीछे भी उनका राजनीतिक स्वार्थ है???

           राजनीति लोकतंत्र की नीव होती है , राजनीति करना गलत नहीं है , परन्तु आंदोलनों और अनशन की आड़ मे राजनीति करना और जनता की भावनाओ से खेलना गलत है .निःसंदेह बाबा रामदेव को अगर राजनीति ही करनी है तो खुल कर सामने आये और पार्टी बना कर चुनाव लड़े.

            नहीं तो कभी न कभी उनका यह दोहरा चरित्र उन्हें ले डूबेगा !!!!