बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

नक्सलवाद- समस्या या समाधान

                                              नक्सलवाद -समस्या या समाधान


नक्सलवाद भारत में एक ऐसी  समस्या के रूप में  उभर  रहा है जिसका अगर तुरंत समाधान नही किया गया तो यह पुरे देश को दीमक  की तरह खा जायेगा  .पिछले कुछ वर्षों में नक्सलवाद  का तेजी से विकास हुआ है , जो भारत की आतंरिक सुरक्षा के लिये  बहुत बड़ा खतरा है .
                                                                        
                                                               यहाँ ये प्रश्न उठना लाजिमी है की आखिर इसकी उत्पत्ति क्यों और किस उद्देश्य के लिये  हुई ????? आखिर हमारे ही  देश के नागरिक में इतनी असंतुष्टि की भावना क्यों हो गयी की   वे शस्त्र  उठाने के लिये  मजबूर हो गए..... 





नक्सलवाद कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों के उस आन्दोलन का अनौपचारिक नाम है  जो भारतीय कम्युनिस्ट आन्दोलन के फलस्वरूप उत्पन्न हुआ  है . नक्सल शब्द की उत्पत्ति पश्चिम बंगाल के छोटे से गाँव नक्सलबारी से हुई है जहाँ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता चारू मजुमदार और कानू  सान्याल ने सत्ता के खिलाफ एक सशस्त्र आन्दोलन की शरुआत की .मजुमदार चीन के कम्युनिस्ट नेता माओत्से तुंग के बहुत बड़े प्रशंसको में से एक थे. उनका मानना था की भारतीय मजदूरो और किसानो की दुर्दशा के लिये  सरकारी नीतियाँ जिम्मेदार हैं जिसकी वजह से उच्च वर्गों का शासन  तंत्र और कृषि तंत्र पर वर्चस्व स्थापित हो गया है उनका मानना था की  इस वर्चस्व को सिर्फ सशस्त्र  क्रांति द्वारा ही समाप्त किया जा सकता है . 
                                                     
                                                  मजुमदार की मौत   के बाद यह आन्दोलन एक से अधिक शाखाओ में विभक्त हो अपने लक्ष्य और विचारधारा से विचलित हो गया .आज कई नक्सली संगठन वैधानिक रूप से स्वीकृत राजनितिक पार्टी बन गए हैं और संसदीय चुनाव में भाग लेते हैं . लेकिन बहुत सारे सगठन आज भी छद्म लड़ाई में लगे हैं . नक्सलवाद की सबसे ज्यादा मार आंध्राप्रदेश ,छतीसगढ़ ,ओडिशा ,झारखण्ड,और बिहार में झेलनी पड़  रही है 

                              नक्सलवाद की   उत्पत्ति का सबसे बड़ा कारण सरकार की गलत नीतियां हैं , आजादी के ६ दशक बीत जाने के बाद भी देश में ऐसे बहुत सारे हिस्से हैं जहाँ विकास तो दूर लोगो की मुलभुत आवश्यकता  भी पूरी नही हो पाई है .ये लोग वर्षो से शोषित और उपेक्षित हैं .देश में उदारीकरण के बाद अमीरों और गरीबो के बीच की खाई और बढती चली गई .जो  आमिर थे वे और भी आमिर हो गए वहीँ दूसरी और जो गरीब,आदिवासी और उपेक्षित लोग थे वे और भी गरीब होते चले गए . ऐसे में नक्सली इसे अपने लिये  समाधान के रूप में देख रहे हैं वहीँ ये सरकार के लिया निःसंदेह समस्या है 
                          
                                                                                      सरकार विकास के नाम पर आदिवासियों की जमीन    लगातार हड़प रही है ,जिस कारण आदिवासियों में सरकार के खिलाफ व्यापक रोष है, इसी रोष का कारण है की  नक्सली सस्त्र उठाने को मजबुर  हुए हैं परन्तु क्या हिंसा किसी समस्या का समाधान है , क्या नक्सलियों के शस्त्र उठाने से इस समस्या का समाधान हो जायेगा ??? 

                                                                             ये कभी संभव नही  है की भारत जैसी लोकतांत्रिक देश में कोई भी संघठन या समूह हथियारों के बल पर पुरे व्यवस्था को बदल दे .  ये भले हो सकता है की देश में कुछ देर के लिये  अराजकता का माहौल पैदा हो जाये , परन्तु हथियार कभी भी किसी भी समस्या का समाधान नही हो सकती .     
             देश की सुदूर इलाको में सरकार के खिलाफ इस तरह का अविश्वास पैदा हो गया है की नक्सल ग्रसित इलाको में लोग कोई भी विवाद से  निपटने के लिये  वहां के नक्सल नेता की मदद लेते हैं बजाय  देश की न्यायपालिका के .   यह सरकार की सामूहिक  विफलता है की देश में एफ .डी.आई .लाने  को तो ये लोग बैचैन हैं लेकिन नक्सल ग्रसित इलाको का विकास कैसे हो, वहां बिजली, सड़क ,और बाकि मुलभुत चीज़े कैसे पहुचे इनसे उन्हें कोई मतलब नही है .
                                         मुझे ये बात समझ नहीं आती की जो नेता ५ सालो तक इन इलाको में जाने से घबराते हैं वे चुनावो के वक़्त वहां कैसे पहुँच जाते हैं??? वही दूसरी ओर सरकार अगर विकास करने की कोसिस भी कर रही है तो नक्सली नेता स्कुलो ,सरकारी संस्थानों को  बम धमाको से उड़ा देते हैं ,पिछले साल नक्सलियों ने घेर कर ७३ जवानो को मार दिया ये घटना काफी दिल दहला देने वाली थी ओर उसके बाद सरकार ने भी ग्रीन हंट के नाम पे न जाने कितने आदिवासियों की जान ली .

                                                    उन्हें ये समझ में क्यों नही आता की ये सब करने से वे ओर भी पीछे हो जायेंगे ,इतिहास गवाह है की बन्दुक के बल पे जहाँ भी सत्ता स्थापित की गयी है वहां हमेशा अराजकता की स्थिति पैदा हो जाती  है ,भारत जैसे देश जो लोकतंत्र की प्रयोगशाला है वहां के लिये तो ये  ओर भी असहजता वाली स्तिथि होगी .      
                          पहले तो आदिवासी सरकार द्वारा उपेक्षित हुए ,उनकी जमीने छीन ली गयी ,प्रयाप्त सुविधाओ से उन्हें वंचित रखा गया ओर अब कुछ नक्सली नेता इन गरीबो के कंधो पर दो नाली रखकर गोली चलाते हैं .हर जगह अगर कोई बलि का बकरा बनता है तो वो है गरीब, उपेक्षित ओर कमजोर .  
                                                                
 जैसे जैसे नक्सलियों की ताक़त बढती गयी उनमे भी विलासी जीवन की कामना बढती गयी ओर वहां भी प्रयाप्त भ्रस्टाचार बढता जा रहा है .गरीब ये नही समझ पा  रहे है की नक्सली भी उनका अपने फायदे के लिये  उपयोग कर रहे हैं 

                        ऐसे समय में जहाँ देश के सामने बहुत सारी समस्याएं हैं वही नक्सलियों की समस्या सरकार के लिये  बड़ी समस्या बन कर उभरी है,    अब सरकार के  सामने ये चुनौती है की कैसे इस समस्याओ का  समाधान निकाला जाये , ये तो सत्य है की आदिवासियों और नक्सलग्रसित  इलाको में देश की व्यवस्था के खिलाफ काफी गुस्सा है .इस गुस्से को समाज के असमाजिक तत्व और भी बढ़ावा दे रहे हैं  वही दूसरी और इन दिनों नक्सलियों को विदेशी  ताकतों से मदद की खबर आ रही है , जो  देश की आंतरिक समस्या के लिये  काफी गंभीर मसला  है .  

शनिवार, 27 अक्तूबर 2012


                      भारत को चारो ओर से घेरता चीन  

 भारत ने हमेशा से दुनिया मे शांति स्थापना को प्रधानता दी है , जिस कारण भारत को कई बार काफी महँगी कीमत चुकानी पड़ी है .भारत के आधुनिक इतिहास का सबसे काला साल १९६२ रहा ,जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया ओर भारत की बहुत सारी जमीन  हथिया ली जो आज भी चीन के कब्जे मे है इस घटना से भारत की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर छवि एक कमजोर देश के रूप मे उभरी . जवाहर लाल नेहरु ने चीन पर आँख मूंद कर विश्वास किया वही दूसरी ओर माओ ने विश्वासघात किया  .उस समय के तात्कालिक सरकार पर ये आरोप लगते रहे हैं की इस युद्ध को रोका जा सकता था .
उस समय बहुत सारी गलती हुई ,लेकिन ये ग़लत चीज़ें इतनी हुईं कि भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन ने अपनी सरकार पर गंभीर आरोप तक लगा दिए. उन्होंने चीन पर आसानी से विश्वास करने और वास्तविकताओं की अनदेखी के लिए सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया .
                     




"भारत और चीन को एशिया में दो बड़ी सैन्य शक्ति तो माना ही जाता है, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इन देशों को काफ़ी दमदार माना जाता है. अक्सर इन दोनों देशों की तुलना भी की जाती है."
युद्ध के पचास साल बीत जाने के भी भारत के संबंध चीन से बहुत ज्यादा सामान्य नही हुए हैं ,अभी भी कभी कभी सीमा पर चीन के सैनिक सीमा उलंघन करते रहते हैं . चीन ने कश्मीर से आने वाले भारतीयों को अलग से नत्थी करके वीजा देने की शुरुवात की ,निःसंदेह चीन भारत को अस्थिर करना चाहता है .          
 भारत की भौगोलिक दशा ऐसी है की वो चारो ओर से दुश्मनों से घिरा हुआ है . ऐसी मे सबसे बड़ा सवाल ये उभर कर सामने आता है की भारत का सबसे बड़ा दुश्मन कौन है  . किस देश  से भारत को सबसे ज्यादा खतरा है . भारत की बड़ी आबादी पकिस्तान  को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानती है , परन्तु अगर राजनितिक ओर कुटनीतिक स्तर पे देखे तो चीन भारत के लिया सबसे बड़ा खतरा बन कर उभरा है. संयोग की बात ये है  की इन सब  के बावजूद हमारा सबसे ज्यादा व्यापार भी चीन से ही होता है , वो अलग बात है की चीन की इसमें ८० फीसदी तक हिस्सेदारी है .
              व्यापारिक दृष्टि से अगर देखे तो चीन इसमें मे भी  उदारीकरण के नाम पर भारत को पंगु बनाने की  कोशिश  कर कर रहा है , चीन अपने देश मे निर्मित सारे  सस्ते माल को हमारे देश  मे पाट  रहा  है ,जबकि भारत चीन की तुलना मे अपने माल को बेचने  मे नाकाम रहा है .चीन खासकर भारत मे अपने दोयम दर्जे के इलेक्ट्रोनिक उत्पाद को खपा रहा है , जाहिर सी बात है आम  भारतीय महेंगे उत्पाद के बदले सस्ते चीनी उत्पाद खरीदने को वरीयता देते हैं. आजकल चीन एक सोची समझी चाल के अंतर्गत भारत के देवी देवताओ की मूर्ति तक बेच रहा है ओर तो ओर चीन पारंपरिक बनारस साडी उद्योग पर भी कब्ज़ा कर रहा है , जिस कारण बनारस के हथकरघा मजदुर के सामने अपनी जीविका चलाने का संकट पैदा  हो  गया है . अब भारत के सामने  ये चुनौती है की कैसे चीनी उत्पादों का मुकाबला करें????
                      राजनितिक स्तर से देखे तो चीन इसमें भी भारत को अस्थिर करने की कोशिश कर रहा है ,भारत के पडोसी मुल्को मे चीन लगातार अपनी सक्रियता बढ़ा रहा है .इसमें भारत की सुस्त विदेश निति भी चीन को काफी मदद कर रही है , हाल के दिनों मे चीन नेपाल मे भारत विरोधी ताक़तों को बढ़ाने की साजिश कर रहा है.  वहीँ दूसरी ओर श्रीलंका मे चीन  बंदरगाह ओर उद्योग स्थापित कर  रहा है .  पकिस्तान की स्थिती किसी से छिपी नही है ,चीन पकिस्तान को भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर रहा है ,पकिस्तान की अर्थव्यवस्था काफी बुरे दौर से गुजर रही है लेकिन वहां की सैन्य शक्ति मे तेजी से इजाफा हो रहा है , इन सब के पीछे चीन का हाथ है ओर चीन पकिस्तान को आधुनिक हथियारों से लेस कर रहा है .
सैन्य स्तर पर देखे तो चीन ने लगातार अपनी स्थिती मजबूत की है हालांकि भारत ने भी अपनी सैन्य ताक़त इजाफा किया है परतु अभी भी भारत चीन से सीधे सीधे टक्कर लेने की स्थिती मे नही है . हाल के दिनों मे चीन  वैश्विक स्तर पर मजबूत देश के रूप मे उभरा है .
                                                

आइए नज़र डालें इन दोनों देशों के मौजूदा सैन्य समीकरणों पर...
भारत बनाम चीन

1,325,000
सशस्त्र सेना
2,285,000
1,155,000
अनुमानित रिजर्व सेना
5,10,000
1,301,000
अर्धसैनिक बल
6,60,000
568
युद्धक टैंक
2800
20
लड़ाकू हेलिकॉप्टर
16
15
सब मरीन
60
280
चौथी पीढी के सामरिक विमान
747
784
लड़ाकू/ज़मीनी लड़ाई वाले विमान
1669
0
अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल लाँचर
66
2
पूर्व चेतावनी देने वाले और नियंत्रित विमान
14
1105
आधुनिक बख़्तरबंद पैदल सेना गाड़ियाँ
2390
1
विमानवाहक जहाज़
1
10
विध्वंसक पोत
13
11
छोटे लड़ाकू जहाज़
65
भारत-चीन: सैन्य ख़र्च
रक्षा खर्च (अमरीकी मिलियन डॉलर में)
रक्षा खर्च (अमरीकी मिलियन डॉलर में)
रक्षा खर्च (प्रति व्यक्ति आय यूएस डॉलर)
रक्षा खर्च (प्रति व्यक्ति आय यूएस डॉलर)
रक्षा खर्च (जीडीपी के प्रतिशत पर आधारित)
रक्षा खर्च (जीडीपी के प्रतिशत पर आधारित)
भारत
चीन
भारत
चीन
भारत
चीन
2008
31450
60187
28
46
2.52
1.33
2009
38278
70381
33
53
3.11
1.41
2010
30865
76361
26
57
1.89
1.30








अभी वैश्विक स्तर अगर चीन को कोई चुनौती दे रहा है तो वो भारत है ,इसलिये  चीन भारत को हर मोर्चे पर विफल करना चाहता है , अभी हाल मे भारत की अमेरिका से बढ़ती  दोस्ती ने चीन को बैचैन कर दिया है इसलिये  वह पाकिस्तान ओर भारत के पडोसी मुल्को से लगातार अपनी दोस्ती बढ़ा  रहा है .जब पिछली बार अमेरिका के राष्ट्रपति भारत आये थे तो ओबामा ने भारत के संसद मे भाषण  दिया था वही दूसरी ओर चीन ने भी पाकिस्तान के नेशनल असेम्बली मे भाषण दिया .
                              ये तो तय है की चीन भारत पर सीधे तौर पर आक्रमण नही कर सकता ,क्योंकि कोई भी परमाणु संपन्न देश किसी दुसरे परमाणु संपन्न देश से युद्ध करने का खतरा मोल लेना नही लेना चाहेगा . पर चीन हर मोर्चे पर भारत को चुनौती दे रहा है . दोनों देश विश्व की महाशक्ति बनने की ओर अपने कदम बढ़ा रहे हैं . महामंदी आने के बाद चीन ओर भारत ही ऐसी देश हैं जिन्होंने अपनी अर्थव्यवस्था को सुस्त नही होने दिया .लेकिन दोनों देश साथ मे विकास करने के बजाय एक दुसरे को नीचा दिखने मे लगे रहते हैं , खासकर चीन भारत को एक विकासशील से विकसित देश बनते हुआ नही देखना चाहता . चीन लगातार पकिस्तान को इसलिए भी सैन्य तौर पर मजबूत कर रहा है की वह भारत को चुनौती पेश कर सके . पाकिस्तान मे चीन ग्वादर बंदरगाह बना रहा है ताकि वह भारत को सैन्य स्तर पर घेर सके . चीन पाकिस्तान को परमाणु बम बनाने मे स्पष्ट तौर पर मदद कर रहा है ओर भारत के खिलाफ चल रहे आतंकवादी गतिविधि का कभी भी विरोध नही करता .
                                    अभी हाल मे ही चीन ने साऊथ चाइना सी मे अपनी दावेदारी पेश की , चीन ने भारत ओर विएतनाम के चल रहे संयुक्त प्रोजेक्ट का जोरदार विरोध किया है . चीन लगातार अपनी सीमओं को बढ़ाने पर लगा हुआ है ,तिब्बत मे तो वह चीनी नागरिक को बसा रहा है ,वहां लगातार बढ़ रहे आत्मदाह के मामले के बाद भी चीन किसी की नही सुन रहा है
                                          भारत को जरूरत है चीन की हर चाल समझने की ,ताकि १९६२ के हालात फिर से ना दोहराया जा सके , चीन ने तभी भारत को सैन्य स्तर पर चुनौती दी थी परन्तु इस बार चीन भारत को आर्थिक स्तर पर चुनौती दे रहा है. लोकतंत्र के बहुत सारे फायदे हैं परन्तु लोकतंत्र मे गठबंधन की राजनीति सही ओर कठोर निर्णय को लेने मे बाधक होती है . भारत मे जरूरत है कम से कम विदेश नीति मे सभी दल ओर गठबंधन एक साथ सर्वसम्मति से निर्णय  ले ताकि देश की संप्रभुता पे कोई आंच न आये .....


                      भारत को चारो ओर से घेरता चीन  

 भारत ने हमेशा से दुनिया मे शांति स्थापना को प्रधानता दी है , जिस कारण भारत को कई बार काफी महँगी कीमत चुकानी पड़ी है .भारत के आधुनिक इतिहास का सबसे काला साल १९६२ रहा ,जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया ओर भारत की बहुत सारी जमीन  हथिया ली जो आज भी चीन के कब्जे मे है इस घटना से भारत की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर छवि एक कमजोर देश के रूप मे उभरी . जवाहर लाल नेहरु ने चीन पर आँख मूंद कर विश्वास किया वही दूसरी ओर माओ ने विश्वासघात किया  .उस समय के तात्कालिक सरकार पर ये आरोप लगते रहे हैं की इस युद्ध को रोका जा सकता था .
उस समय बहुत सारी गलती हुई ,लेकिन ये ग़लत चीज़ें इतनी हुईं कि भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन ने अपनी सरकार पर गंभीर आरोप तक लगा दिए. उन्होंने चीन पर आसानी से विश्वास करने और वास्तविकताओं की अनदेखी के लिए सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया .
                     




"भारत और चीन को एशिया में दो बड़ी सैन्य शक्ति तो माना ही जाता है, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इन देशों को काफ़ी दमदार माना जाता है. अक्सर इन दोनों देशों की तुलना भी की जाती है."
युद्ध के पचास साल बीत जाने के भी भारत के संबंध चीन से बहुत ज्यादा सामान्य नही हुए हैं ,अभी भी कभी कभी सीमा पर चीन के सैनिक सीमा उलंघन करते रहते हैं . चीन ने कश्मीर से आने वाले भारतीयों को अलग से नत्थी करके वीजा देने की शुरुवात की ,निःसंदेह चीन भारत को अस्थिर करना चाहता है .          
 भारत की भौगोलिक दशा ऐसी है की वो चारो ओर से दुश्मनों से घिरा हुआ है . ऐसी मे सबसे बड़ा सवाल ये उभर कर सामने आता है की भारत का सबसे बड़ा दुश्मन कौन है  . किस देश  से भारत को सबसे ज्यादा खतरा है . भारत की बड़ी आबादी पकिस्तान  को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानती है , परन्तु अगर राजनितिक ओर कुटनीतिक स्तर पे देखे तो चीन भारत के लिया सबसे बड़ा खतरा बन कर उभरा है. संयोग की बात ये है  की इन सब  के बावजूद हमारा सबसे ज्यादा व्यापार भी चीन से ही होता है , वो अलग बात है की चीन की इसमें ८० फीसदी तक हिस्सेदारी है .
              व्यापारिक दृष्टि से अगर देखे तो चीन इसमें मे भी  उदारीकरण के नाम पर भारत को पंगु बनाने की  कोशिश  कर कर रहा है , चीन अपने देश मे निर्मित सारे  सस्ते माल को हमारे देश  मे पाट  रहा  है ,जबकि भारत चीन की तुलना मे अपने माल को बेचने  मे नाकाम रहा है .चीन खासकर भारत मे अपने दोयम दर्जे के इलेक्ट्रोनिक उत्पाद को खपा रहा है , जाहिर सी बात है आम  भारतीय महेंगे उत्पाद के बदले सस्ते चीनी उत्पाद खरीदने को वरीयता देते हैं. आजकल चीन एक सोची समझी चाल के अंतर्गत भारत के देवी देवताओ की मूर्ति तक बेच रहा है ओर तो ओर चीन पारंपरिक बनारस साडी उद्योग पर भी कब्ज़ा कर रहा है , जिस कारण बनारस के हथकरघा मजदुर के सामने अपनी जीविका चलाने का संकट पैदा  हो  गया है . अब भारत के सामने  ये चुनौती है की कैसे चीनी उत्पादों का मुकाबला करें????
                      राजनितिक स्तर से देखे तो चीन इसमें भी भारत को अस्थिर करने की कोशिश कर रहा है ,भारत के पडोसी मुल्को मे चीन लगातार अपनी सक्रियता बढ़ा रहा है .इसमें भारत की सुस्त विदेश निति भी चीन को काफी मदद कर रही है , हाल के दिनों मे चीन नेपाल मे भारत विरोधी ताक़तों को बढ़ाने की साजिश कर रहा है.  वहीँ दूसरी ओर श्रीलंका मे चीन  बंदरगाह ओर उद्योग स्थापित कर  रहा है .  पकिस्तान की स्थिती किसी से छिपी नही है ,चीन पकिस्तान को भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर रहा है ,पकिस्तान की अर्थव्यवस्था काफी बुरे दौर से गुजर रही है लेकिन वहां की सैन्य शक्ति मे तेजी से इजाफा हो रहा है , इन सब के पीछे चीन का हाथ है ओर चीन पकिस्तान को आधुनिक हथियारों से लेस कर रहा है .
सैन्य स्तर पर देखे तो चीन ने लगातार अपनी स्थिती मजबूत की है हालांकि भारत ने भी अपनी सैन्य ताक़त इजाफा किया है परतु अभी भी भारत चीन से सीधे सीधे टक्कर लेने की स्थिती मे नही है . हाल के दिनों मे चीन  वैश्विक स्तर पर मजबूत देश के रूप मे उभरा है .
                                                

आइए नज़र डालें इन दोनों देशों के मौजूदा सैन्य समीकरणों पर...
भारत बनाम चीन

1,325,000
सशस्त्र सेना
2,285,000
1,155,000
अनुमानित रिजर्व सेना
5,10,000
1,301,000
अर्धसैनिक बल
6,60,000
568
युद्धक टैंक
2800
20
लड़ाकू हेलिकॉप्टर
16
15
सब मरीन
60
280
चौथी पीढी के सामरिक विमान
747
784
लड़ाकू/ज़मीनी लड़ाई वाले विमान
1669
0
अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल लाँचर
66
2
पूर्व चेतावनी देने वाले और नियंत्रित विमान
14
1105
आधुनिक बख़्तरबंद पैदल सेना गाड़ियाँ
2390
1
विमानवाहक जहाज़
1
10
विध्वंसक पोत
13
11
छोटे लड़ाकू जहाज़
65
भारत-चीन: सैन्य ख़र्च
रक्षा खर्च (अमरीकी मिलियन डॉलर में)
रक्षा खर्च (अमरीकी मिलियन डॉलर में)
रक्षा खर्च (प्रति व्यक्ति आय यूएस डॉलर)
रक्षा खर्च (प्रति व्यक्ति आय यूएस डॉलर)
रक्षा खर्च (जीडीपी के प्रतिशत पर आधारित)
रक्षा खर्च (जीडीपी के प्रतिशत पर आधारित)
भारत
चीन
भारत
चीन
भारत
चीन
2008
31450
60187
28
46
2.52
1.33
2009
38278
70381
33
53
3.11
1.41
2010
30865
76361
26
57
1.89
1.30








अभी वैश्विक स्तर अगर चीन को कोई चुनौती दे रहा है तो वो भारत है ,इसलिये  चीन भारत को हर मोर्चे पर विफल करना चाहता है , अभी हाल मे भारत की अमेरिका से बढ़ती  दोस्ती ने चीन को बैचैन कर दिया है इसलिये  वह पाकिस्तान ओर भारत के पडोसी मुल्को से लगातार अपनी दोस्ती बढ़ा  रहा है .जब पिछली बार अमेरिका के राष्ट्रपति भारत आये थे तो ओबामा ने भारत के संसद मे भाषण  दिया था वही दूसरी ओर चीन ने भी पाकिस्तान के नेशनल असेम्बली मे भाषण दिया .
                              ये तो तय है की चीन भारत पर सीधे तौर पर आक्रमण नही कर सकता ,क्योंकि कोई भी परमाणु संपन्न देश किसी दुसरे परमाणु संपन्न देश से युद्ध करने का खतरा मोल लेना नही लेना चाहेगा . पर चीन हर मोर्चे पर भारत को चुनौती दे रहा है . दोनों देश विश्व की महाशक्ति बनने की ओर अपने कदम बढ़ा रहे हैं . महामंदी आने के बाद चीन ओर भारत ही ऐसी देश हैं जिन्होंने अपनी अर्थव्यवस्था को सुस्त नही होने दिया .लेकिन दोनों देश साथ मे विकास करने के बजाय एक दुसरे को नीचा दिखने मे लगे रहते हैं , खासकर चीन भारत को एक विकासशील से विकसित देश बनते हुआ नही देखना चाहता . चीन लगातार पकिस्तान को इसलिए भी सैन्य तौर पर मजबूत कर रहा है की वह भारत को चुनौती पेश कर सके . पाकिस्तान मे चीन ग्वादर बंदरगाह बना रहा है ताकि वह भारत को सैन्य स्तर पर घेर सके . चीन पाकिस्तान को परमाणु बम बनाने मे स्पष्ट तौर पर मदद कर रहा है ओर भारत के खिलाफ चल रहे आतंकवादी गतिविधि का कभी भी विरोध नही करता .
                                    अभी हाल मे ही चीन ने साऊथ चाइना सी मे अपनी दावेदारी पेश की , चीन ने भारत ओर विएतनाम के चल रहे संयुक्त प्रोजेक्ट का जोरदार विरोध किया है . चीन लगातार अपनी सीमओं को बढ़ाने पर लगा हुआ है ,तिब्बत मे तो वह चीनी नागरिक को बसा रहा है ,वहां लगातार बढ़ रहे आत्मदाह के मामले के बाद भी चीन किसी की नही सुन रहा है
                                          भारत को जरूरत है चीन की हर चाल समझने की ,ताकि १९६२ के हालात फिर से ना दोहराया जा सके , चीन ने तभी भारत को सैन्य स्तर पर चुनौती दी थी परन्तु इस बार चीन भारत को आर्थिक स्तर पर चुनौती दे रहा है. लोकतंत्र के बहुत सारे फायदे हैं परन्तु लोकतंत्र मे गठबंधन की राजनीति सही ओर कठोर निर्णय को लेने मे बाधक होती है . भारत मे जरूरत है कम से कम विदेश नीति मे सभी दल ओर गठबंधन एक साथ सर्वसम्मति से निर्णय  ले ताकि देश की संप्रभुता पे कोई आंच न आये .....