गुरुवार, 25 दिसंबर 2014

एक होनहार क्रिकेटर का अंत.....

                              एक होनहार क्रिकेटर का अंत .........
25 नवम्बर को अचानक पूरा क्रिकेट जगत सकते में आ गया ,जब फिलिप ह्युज के सर में बाउंसर से  चोट लगने और उसके बाद मुंह के बल पिच पर गिरने की  खबर आई. उस समय सिडनी क्रिकेट ग्राउंड में मौजूद खिलाडी और दर्शक ने ये कभी नहीं सोचा होगा की अगले दो दिन के बाद इस होनहार क्रिकेटर की मौत हो जाएगी.ह्युज चोट लगने के  समय स्थानीय शैफील्ड शील्ड मैच खेल रहें थे.इस प्रतिभाशाली क्रिकेटर के मौत के बाद बांकी क्रिकेटरों के सामने अब खेल के समय सुरक्षा का प्रश्न अहम हो गया है. क्रिकेटर खासकर बल्लेबाज  खेलते समय सुरक्षा के अत्याधुनिक साजो - समान लगाते हैं,उसके बाद भी इस तरह की मौतें काफी सवाल पैदा करती हैं.ह्युज की मौत सर में चोट लगने के वक्त उस समय हुई ,जब उन्होंने अपने सर में हेलमेट लगाया हुआ था.इससे आने वाले क्रिकेटरों में यह सन्देश गया है कि कोई भी क्रिकेटर अब सुरक्षित नहीं है.जेंटल मैन गेम के खिलाडियों के मन में डर का यह भाव खेल के लिहाज से कतई सही नहीं है.
                                                                                                          ऐसा नहीं है कि ह्युज की मौत मैदान में चोट लगने से होने वाली पहली मौत है.इसके पहले भी भारत के होनहार क्रिकेटर रमन लाम्बा का निधन फरवरी 1998 में  बांग्लादेश सीरीज में अभ्यास मैच के दौरान  फील्डिंग करते समत सर में चोट लगने की वजह से हुई थी.पकिस्तान के सत्रह वर्षीय क्रिकेटर अब्दुल अजाज़  की मौत भी एक स्थानीय क्रिकेट मैच के दौरान सीने में चोट लगने से हुई थी.इससे पहले न्यूजीलेंड के एवेन चेट फिल्ड ,भारत  के नारी कांट्रेक्टर ,दक्षिण अफ्रीका के मार्क बाउचर भी चोट लगने के कारण काफी गंभीर रूप से घायल हो चूके हैं. क्रिकेट में चोट लगने की घटना क्रिकेट के शुरुवात के साथ ही शुरू हो गयी थी.क्रिकेट के  शुरुवाती दिनों  में  बेट्समैन  बिना किसी सुरक्षा के ही खेलते थे.हालांकि कुछ दिनों बाद खिलाडी पैड लगाने लगे थे,लेकिन हेलमेट पहनने की शुरुवात काफी बाद में हुई.वो भी उस दौर में जब वेस्ट इंडीज के खतरनाक गंद्बजों का बोल बाला था.बिना हेलमेट पहने खिलाडी के पास से जब सन्न आवाज करते हुए गेंद गुजरती होगी ,उस समय उनकी अवस्था का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है.
            आज के अत्याधुनिक क्रिकेट में तमाम सुविधाएँ  होने के बावजूद ह्युज की मौत काफी चिंताजनक है.कई विशेषज्ञों का कहना है कि हेलमेट के बनावट में पर्याप्त सुधार की जरूरत है ,कई विशेषज्ञों का कहना है की क्रिकेट में बाउंसर गेंद को हमेशा के लिये प्रतिबंधित कर देना चाहिए.लेकिन आज के 20-20 क्रिकेट के दौर में वैसे भी गेंदबाजों  की धुनाई से क्रिकेट बल्लेबाजों का खेल बन गया है.ऐसे में अगर बाउंसर को प्रतिबंधित कर दिया गया तो गेंदबाजों के रहे सहे हौसले भी पस्त हो जायेंगे.लेकिन क्या इस तरह के मौतों को अस्वाभाविक या अकस्मात मौत का मामला को मानते हुए ऐसे ही भुला दिया जाना ठीक होगा ? सवाल कई हैं .खासकर के तब जब क्रिकेटर फिलिप ह्युज जैसा होनहार खिलाडी हो,जो हो सकता था आने वाले समय में विश्व क्रिकेट को एक नई  ऊंचाई पर ले जाता .साधारण किसान परिवार में जन्मे ह्युज ने कम समय में ही अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर दिया था.ह्युज दुनिया के ऐसी पहले सबसे कम उम्र के खिलाडी थे,जिन्होंने टेस्ट के दोनों पारियों में शतक बनाया . वह ऑस्ट्रेलिया के भी पहले क्रिकेटर थे जिन्होंने अपने वनडे के पहले मैच में ही शतक लगाया.पूरा विश्व क्रिकेट इस घटना के बाद गहरे सदमे में चला गया है.एक ऐसे होनहार और जुझारू खिलाडी की मौत हमेशा क्रिकेट और उसके प्रशंसक को खलती रहेगी.अलविदा फिलिप ह्युज ....... 

शनिवार, 11 अक्तूबर 2014

                          अलग तरह की फिल्म है हैदर 

भारतीय फिल्म भी अजीब मोड़ पर आ खड़ा हुआ है. एक तरफ जहाँ किक ,सिंघम जैसे मुख्य धारा की मनोरंजक फ़िल्में सौ करोड़ का आंकड़ा पार कर लेती है.वहीँ दूसरी तरफ हैदर जैसी फिल्मे भी यहाँ है जो बहुत सारी तारीफों के साथ अच्छे खासे पैसे भी बटोर ले जाती है.हैदर को कला फिल्मों की श्रेणी में तो नहीं रख सकते परन्तु यह मुख्य धारा की फिल्मों से  काफी अलग है.फिल्म सौ करोड़ का आंकड़ा पार कर पायेगी ,ये कहना मुश्किल है.लेकिन फिल्म समीक्षकों ने काफी दिनों बाद किसी फिल्म की इतनी तारीफ़ की है.तारीफ़ करना बनता भी है ,क्यों कि फिल्म शुरुवात से ही दर्शकों के बीच जबरदस्त पकड़ बना के चलती है.शेक्सपियर के हेमलेट से प्रेरित यह फिल्म विशाल भारद्वाज के बेहतरीन निर्देशन को साबित करती है.शाहिद कपूर काफी दिनों बाद अच्छे लगे हैं.यूं तो उनमे बेहतरीन अभिनय क्षमता है.पर खराब फिल्मों के चयन से उनकी फिल्म लगातार पिट रही थी.कुछ समय पहले विशाल भरद्वाज की हीं कमीने में उनके काम की काफी तारीफ़ हुई थी.कई बार ऐसा होता है कि कई निर्देशक कुछ ख़ास तरह के अभिनेता से बेहतर काम करा लेते हैं.फिर वही अभिनेता किसी और फिल्म में औसत लगने लगता है.ये कुछ इस तरह है कि "जौहरी को ही हीरे की पहचान होती है.खैर ये तो बात हो गयी फिल्म के मुख्य अभिनेता की ,बांकी तब्बू ,के.के.मेनन ,श्रद्धा कपूर ने भी बेजोड़ अभिनय किया है.तब्बू ने भी दिखा दिया है कि वे क्यों अलग जोनर की फिल्मों की बादशाह मानी जाती है.के.के. मेनन जैसे अभिनेता हमेशा अपनी छाप छोड़ने में सफल होते हैं,इस फिल्म में भी ऐसा ही हुआ है.श्रद्धा कपूर अभी नयी हैं,इसके बावजूद उन्होंने अच्छा अभिनय किया है.इरफ़ान खान हमेशा की तरह अपने छोटे से रोल में प्रभावी दिखें हैं.
                    फिल्म की कहानी कहीं कहीं सुस्त हो जाती है.अंतिम आधा घंटा ऐसा लगता है कि फिल्म को जबरदस्ती खिंचा गया है.इसके बावजूद फिल्म में गजब का आकर्षण है.यह ऐसा आकर्षण है जिससे आप फिल्म देखने के बाद बहुत दिनों तक मुक्त नहीं हो पाएंगे.काफी दिनों बाद ऐसी फिल्म आयी है ,जो सोशल मीडिया से लेकर लोगों की जुबान तक चर्चा का विषय है.फिल्म में कश्मीर के हालात को बखूबी दिखाया गया है.वहां के आम आदमी आये दिन कैसी दिक्कतों का सामना कर रहें हैं,सेना और आम आदमियों के बीच की खिंचा तानी को भी बखूबी दिखाया गया है.कश्मीर के मनमोहक दृश्य इस फिल्म को और भी खूबसूरत बनाते हैं.फिल्म का संगीत भले ही उतना प्रभावी नहीं है ,परन्तु फिल्म के साथ गाने जम जाते हैं.फिल्म की लोकेशन ,लाइटिंग ,दृश्य सज्जा भी अच्छी है.रही बात फिल्म की कहानी की ,तो ये हेमलेट से प्रेरित जरुर है,परन्तु निर्देशक ने इसमें फिल्म के हिसाब से जरूरी फेर बदल भी किये हैं.
                                                                          खैर ,ऐसी बेहतरीन फिल्म बनाने और उसमे कलाकारों से बेहतरीन अभिनय करवाने के लिये विशाल भारद्वाज धन्यवाद के पात्र हैं.कुछ ही गिने चुने निर्देशक हैं,जो फिल्म के नाम पर सिर्फ फिल्म बनाते हैं,बांकी तो आपको पता हीं है.

मंगलवार, 19 अगस्त 2014

"हमारे कृष्ण "

                             ----- हमारे कृष्ण ----
“अम्मा-अम्मा” -  सोहन ,राजू और विशाल  मेरे साथ नहीं खेलता है .कहता है तुम दूसरी जाति के हो .राजू कहता है कि उसके पापा ने बताया है कि मुस्लिम बहुत गंदे होते हैं,वे हर काम उल्टा करते हैं. बारह वर्ष के जीशान ने शिकायत भाव से अपनी माँ को ये बात बताई . जीशान अपनी माँ से ये भी कहता है कि मै उनसे अच्छा क्रिकेट खेलता हूँ, उसने अपनी माँ से मासूमियत बड़े भाव से कहा कि अगर हम गंदे हैं तो मेरा छक्का सबसे दूर क्यों जाता है. जीशान की माँ ने बड़े ही प्यार से अपने बेटे को गले लगाया और कहा मेरा बेटा गन्दा नहीं है. वो दुनिया का सबसे अच्छा लड़का है,जो लोग तुम्हारे साथ नहीं खेलते ,वो गंदे हैं. वो चाह कर भी जीशान को ज्यादा कुछ न समझा सकी 


                                   जीशान जिस सरकारी स्कुल में पढता था ,वहीँ उसके साथ प्रिया   भी पढाई करती था.प्रिया और जीशान अच्छे दोस्त थे.प्रिया को छोड़कर जीशान के टिफ़िन को कोई हाथ भी नहीं लगाता था. प्रिया को जीशान के माँ के हाथ की बनी सवईयाँ बहुत पसंद थी .वो बड़े ही चाव से सवई और रोटी खाती थी. प्रिया के माता पिता को ,प्रिया के साथ जीशान की दोस्ती फूटी आँख नहीं सुहाती थी. जीशान जब भी प्रिया के घर जाता, उसकी माँ नाक-मुंह सिकुड़ के कमरे से बाहर चली जाती थी .प्रिया कई बार अपनी माँ से ये पूछती कि जीशान के हमारे घर आते ही तुम क्यों ऐसा व्यवहार करती हो .जीशान की मम्मी तो बहुत अच्छी है,वो मुझसे प्यार से बातें करती है और सवईयाँ भी खिलाती है. ये सुनती ही प्रिया की माँ उसे जोड़ से डांटती और कहती ,चले जाओ उसी मुस्लिम के पास. फिर प्रिया माँ को चिढ़ाने के लिये जोड़ से कहती ,हाँ हाँ तुम देखना मै,सच में चली जाउंगी उस मुस्लिम के पास.
                                    
                                   ''जीशान को हिन्दू पर्व-त्यौहार बहुत पसंद थे. खासकर जन्माष्टमी, जन्माष्टमी के अवसर पर बच्चों को कृष्ण बना देख, उसका मन भी कृष्ण बनने को करता था. प्रिया के पिता एक कृष्ण मन्दिर के ट्रस्ट मेंबर थे. इस बार उस कृष्ण मन्दिर में जन्माष्टमी के अवसर पर कृष्ण जन्म महोत्सव का आयोजन था. प्रिया के पिता रामलाल को एक 10-12 साल के एक बच्चे की तलाश थी, जो कृष्ण बनकर नृत्य कर सके .इसलिये उसे किसी श्यामले और मासूम बच्चे की तलाश थी. पहले तो उसने ट्रस्ट से जुड़े लोगो के बच्चे को ही आजमाया ,पर बात नहीं बनी. अगले दिन प्रिया जब स्कूल गयी तो उसने जीशान को ये बात बताई. जीशान ख़ुशी से झूम उठा, उसने कहा मै बनूंगा कृष्ण ,तुम अपने पापा को जल्दी से बताना कि जीशान ही कृष्ण बनेगा. फिर तुरंत उसने कुछ सोचा और हतोत्साहित होते हुए कहा ,पर मैं ,मैं तो मुस्लिम हूँ. और वैसे भी तुम्हारे मम्मी पापा तो मुझे पसंद भी नहीं करते. मै नहीं बन सकता कृष्ण . प्रिया ने बड़े ही भोलेपन से कहा, तो क्या हुआ, तुम बिलकुल कृष्ण जैसे दिखते हो और फिर तुम क्रिकेट भी तो अच्छा खेलते हो.इसलिये तुम हीं बनोगे “हमारे कृष्ण” .


                             प्रिया ने जब ये बात अपने पापा को बताई तो एक क्षण के लिये उसके पापा ने सोचा और कहा ,हाँ बेटी, तुम ठीक कह रही हो. जीशान तो बिलकुल कृष्ण जैसा ही लगता है. फिर वो कुछ देर ठहरे और कहा,-नहीं-नहीं, एक मुस्लिम कैसे कृष्ण बन सकता है .और सिर्फ कृष्ण की तरह दिखने से क्या होगा ,वो हमारी बिरादरी का भी नहीं है और फिर मंदिर ट्रस्ट वाले तो ये कभी नहीं मानेंगे कि एक मुस्लिम के कदम हमारे मंदिर में पड़े. नहीं, ये नहीं हो सकता. वैसे भी उसका भगवान हमसे अलग है, वो हमारे भगवान का रोल क्यों अदा करे भला. प्रिया के पापा ने इतना कहा, और वहां से चलते बने. प्रिया को ये समझ ही नहीं आया कि जब जीशान भी मेरे तरह ही पढता है,खेलता है और बातें करता है तो वह हमसे अलग कैसे हुआ ? और तो और वह कृष्ण की तरह ही दीखता भी तो है, फिर उसका भगवान हमसें अलग क्यों है ?


                              अगले दिन जब वह स्कुल गयी और जीशान को ये बात बताई की चूँकि तुम मुस्लिम हो और तुम्हारा भगवान भी हमसे अलग है .इसलिये तुम कृष्ण नहीं बन सकते. जीशान निराश हो गया, उसे समझ नहीं आया कि मुस्लिम होने में बुराई क्या है? मै कृष्ण क्यों नहीं बन सकता, मेरा भगवान अलग क्यों है ? प्रिया और जीशान दोनों निराश हो गये. फिर प्रिया ने जीशान से कहा ,क्यों न हम जन्माष्टमी के दिन राधा – कृष्ण की तरह बन जाए.हमारे पास जितनी भी पैसे गुल्लक में पड़े हैं,उससे हम राधा और कृष्ण के गेट अप के कपडे खरीदे और पूरे दिन ऐसे ही रहे .जीशान को ये आइडिया बेहद पसंद आया ,आखिर कृष्ण बनने की उसकी हसरत जी पूरी हो रही थी.दोनों ने अपने बचत में से कृष्ण - राधा की ड्रेस खरीदी और जन्माष्टमी के दिन पहन कर आस पास के मोहल्ले में घुमने लगे. दोनों की जोड़ी सच में जन्म-जन्मान्तर तक एक दूसरे के प्रेम में बंधे कृष्ण-राधा की तरह ही लग रही थी. परन्तु ये बात जैसे ही प्रिया के मम्मी पापा को पता चली ,तो उनदोनों ने प्रिया की बहुत पिटाई लगाई. प्रिया के पापा ने कहा अगर बनाना ही था तो कृष्ण बनते ,राधा क्यों बनी. प्रिया ने बड़ी ही ऊँची आवाज में कहा ,”राधा भी तो भगवान है न पापा.”  और अगले दिन ही प्रिया के पिता ने उसका नाम उस सरकारी विद्यालय से कटवा दिया. अब प्रिया और जीशान दोनों अलग अलग स्कूल में पढ़ते थे. इसके बावजूद, वे जब भी मिलते तो वो राधा कृष्ण वाला प्रेम उभर कर सामने आता, जिस प्रेम न ही कोई बंधन हैं और न ही कोई रोक टोक,जो प्रेम समाज की सारी मान्यता और झूठी परम्पराओं को ठेंगा दिखाता है.
धन्यवाद
राहुल आनंद .