मंगलवार, 30 जुलाई 2013

खाद्य सुरक्षा बिल-फायदा या नुकसान

    खाद्य सुरक्षा बिल- फायदा या नुकसान

आज़ादी के 65 सालों बाद भी हमारे देश में सभी लोगों को दो वक़्त का भोजन नहीं मिल पाता है .जहाँ २० साल में भारत ने हर मोर्चे पर तरक्की की है ,वहीँ आश्चर्यजनक ढंग से कुपोषण में भी जबरदस्त इज़ाफा हुआ है .वर्ल्ड बैंक के अनुसार ,भारत में पांच वर्ष से कम बच्चों  का कुपोषण स्तर दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा है. संयुक्त राष्ट्र द्वारा परिभाषित गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या भारत में 41 करोड़ है ,यह संख्या उनकी है ,जिनकी आमदनी 1.26 डॉलर से भी कम है.हर बार सरकार गरीबों के लिए नये नये वादों के साथ सत्ता में आती तो है ,पर गरीबों की हालत जस की तस बनी रही . चार साल पहले केंद्र की यु .पी ए सरकार ने अपनी चुनावी घोषणा पत्र में खाद्य सुरक्षा बिल लाने का वादा किया था.



                     शुरुवाती चार सालों में तो केंद्र सरकार ने इस बिल को पास करवाने में कोई तत्परता नहीं दिखाई ,लेकिन चुनाव नजदिक आते हीं, इस बिल को पास करवाने के लिए यूपीए सरकार एड़ी चोटी का जोर लगाने लगी .
-आइये जानते हैं कि आखिर क्या है खाद्य सुरक्षा बिल और इसके फायदे?
-इसके तहत ३ सालों तक चावल ३ रूपये किलो ,गेंहू २ रूपये किलो और मोटा अनाज १ रूपये किलो देने का प्रावधान है.
-योजना का लाभ पाने का हक़दार कौन होगा,ये तय करने की जिम्मेदारी केंद्र ने राज्य सरकारों पर छोड़ दी है.
-घर की सबसे बुजुर्ग महिला को परिवार का मुखिया माना जायेगा
-गर्भवती महिला और बच्चों को ,दूध पिलाने वाली महिलाओं को भोजन के अलावा अन्य मातृत्व लाभ (कम से कम 6००० रूपये) भी मिलेंगे .
-इस योजना को लागू करने के लिए सरकार को इस वर्ष (2013-14)612.3 लाख टन अनाजों की जरूरत होगी .
- केंद्र को अनाज के खरीद और वितरण के लिए 1.25 करोड़ रूपये खर्च करने होंगे.
-गांवों की 75 फीसदी और शहरों की 50 फीसदी आबादी इस योजना के दय्रदे में आएगी.
-अगर राज्य सरकार सस्ता अनाज उबलब्ध नहीं करा पायी तो,केंद्र द्वारा मदद मुहैया कराई जायगी .
-6 से 14 वर्ष की आयु वाले बच्चों को आईसीडीएस(integrated child  development service) और मिड डे मिल योजना का लाभ मिलेगा.
-शिकायतों को दूर करने के लिए सभी राज्यों को फ़ूड पैनल या आयोग बनाना होगा .अगर कोई कानून का पालन नहीं करता है तो आयोग उसपर कारवाई कर सकता है.
-इस स्कीम को आधार स्कीम के साथ लिंक्ड किया जायेगा .इसके तहत हर नागरिक को विशिष्ट पहचान नंबर दिया जायेगा ,जोकि डेटाबेस से लिंक होगा.इसमें हर कार्ड हिल्डर का बायोमेट्रिक्स डाटा होगा.
-सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत अन्त्योदय अन्न योजना के तहत आने वाले लगभग 2.43 करोड़ निर्धनतम परिवार कानूनी रूप से प्रति परिवार के हिसाब से हर महीने 35किलोग्राम खाद्यान्न पाने के हकार होंगे .
-लोकसभा में दिसम्बर,2011 में पेश मूल में लाभार्थियों को प्राथमिक और आम परिवारों के आधार पर विभाजित किया गया था . मूल विधेयक के तहत सरकार प्रथिमकता श्रेणी वाले प्रत्येक व्यक्ति को सात किलो चावल और गेंहू देगी.जबकि समान्य श्रेणी के लोगों को कम से कम तीन किलों अनाज न्यूनतम समर्थन मूल्य के आधे दाम पर दिया जायेगा .
-खाद्य सुरक्षा बिल में संसोधन संसदीय स्थाई समिति के रिपोर्ट के अनुसार किये गये हैं,जिसने लाभार्थियों को दो वर्गो में विभाजित करने के प्रस्ताव को समाप्त करने की सलाह दी है.पैनल ने एक समान कीमत पर हर महीने प्रति व्यक्ति 5 किलोग्राम अनाज दिए जाने की वकालत की.
-शुरू में इस योजना को देश के 150 पिछड़े जिले में चलाया जायेगा और बाद में इस सब्सिडी को पूरे देश में लागू किया जायेगा.



                                    ------आखिर कौन सी बाधाएं हैं इस बिल को पास कराने में?
-10 मार्च 2013 को केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने कुछ बदलावों के साथ विधेयक को मंजूरी दी थी .हंगामे के बीच लोकसभा में खाद्य सुरक्षा बिल 6 मई को पेश किया गया ,लेकिन सदन में भ्रष्टाचार के मुद्दों पर मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी और उनके सहयोगी दल के हंगामे के चलते बिल पारित नहीं हो सका.
-कुछ राज्य सरकारों ने बिल को लेकर आशंका जतायी है,जबकि कई अन्य राज्य का कहना है प्रस्तावित कानून के आलोक में जो खर्चे बढ़ेंगे ,उसका जिम्मा केंद्र सरकार खुद उठाये ,उन्हें राज्यों के ऊपर ना डाला जाये.

-गैर सरकारी संघटनो की मुख्य आलोचना यह है कि बिल में मौजूदा बाल कुपोषण से निपटने के प्रावधानों को विधिक अधिकार में बदला जा सकता था ,जबकि सरकार ने ऐसा नहीं किया .
-इससे पहले १३ जून को भी यह अध्यादेश कैबिनेट की बैठक में आया था ,लेकिन यूपीए के घटक दलों के बीच आम सहमती नहीं बन पायी थी .बैठक में तय हुआ था कि सरकार इस मुद्दे पर विपक्षी दलों के साथ भी बात करेगी और विधेयक को बुलाने के लिए विशेष सत्र बुलाएगी .सरकार ने बजट सत्र में यह विधेयक पास करवाने की कोशिश की थी ,लेकिन भाजपा और अन्य राजनीतिक दलों के विरोध के कारण यह नहीं हो सका था.हालांकि भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह और नेता प्रतिपक्ष मानसून सत्र को समय से पहले बुलाकर इस विधेयक पर चर्चा करने की बात भी कही थी .लेकिन सरकार इस मुद्दे पर बहस करना ही नहीं चाहती है ,सरकार बस ये चाहती है कि कैसे भी करके ये अध्यादेश जल्द से जल्द पारित हो जाये .


                                        ------इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर भाजपा के वरिष्ठ नेता क्या कहते हैं.
-भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने 6 जुलाई को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख से मुलाक़ात करने के बाद संवाददाताओं से कहा कि हम संसद के आगामी मानसून सत्र में इसका विरोध नहीं करेंगे ,लेकिन हम इसमें कुछ ख़ास संशोधन चाहते हैं.हालांकि उन्होंने अभी ये स्पष्ट नहीं किया है कि भाजपा क्या संसोधन चाहती है .
             विधेयक को लाने में विलम्ब पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि संप्रग नीत कांग्रेस सरकार ने विधेयक को पारित करने में इतना समय क्यों लगाया और वह भी अध्यादेश के जरिये,जबकि सरकार ने २००४ के चुनावों में वायदा किया था कि सत्ता में आने के १०० दिन के भीतर विधेयक लाया जायेगा .उन्होंने इस अध्यादेश को लोकतंत्र पर क्रूर मजाक करार दिया.
साथ ही उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी इस विधेयक पर चर्चा करने से कभी पीछे नहीं हटेगी.कांग्रेस का ये आरोप बेबुनियाद है कि भाजपा इस बिल को पारित नहीं करने देना चाहती.श्री सिंह ने कहा कि यह बात समझ से पड़े है कि सरकार ने इस अध्यादेश को लागू करवाने हेतु इतनी हड़बड़ी क्यों दिखा रही.
-वहीँ सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह ने अध्यादेश को लेकर तीखा निशाना साधते हुए कहा कि कोंग्रेस वोट बैंक की राजनीति में लगी है और उसके इरादे ठीक नहीं हैं .लोकसभा चुनाव नजदिक हैं और कांग्रेस में ऐसे अध्यादेश ठीक उसी तरह ला रही है,जिस तरह पिछले चुनावों में पहले मनरेगा योजना को लाया गया था.
-कोंग्रेस महासचिव अजय माकन और खाद्य मंत्री के वी थॉमस ने कहा कि ने विपक्ष पर आरोप लगाया कि उसने संसद के पिछले सत्र में महत्वपूर्ण विधेयक को पारित करने में महत्वपूर्ण विधेयक को पारित करने में अडचन पैदा की . उन्होंने कहा कि यह अध्यादेश उचित है, यह कई लोगो की जीवन बचने वाला ,जीवन बदलने वाला हो सकता है.



                                       -----आइये जानते हैं इस बिल पर क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स

-खाद्य सुरक्षा बिल पर असंतुष्टि जताते हुए प्रसिद्ध कृषि विशेषज्ञ डा. देवेन्द्र शर्मा ने कहा की इस बिल पर राजनैतिक दलों में  प्रयाप्त इक्छाशक्ति का अभाव दिखता है ,उन्होंने कहा की इस मामले में ब्राज़ील में बहुत कुछ किया गया है, २००१ में ब्राज़ील में जीरो हंगर प्रोग्राम की शुरुवात की गयी थी ,और ख़ुशी की बात है कि २०१५ तक यह देश सबका पेट भरने में सक्षम हो जायेगा. वहां यह प्रोग्राम पुरे योजनाबद्ध तरीके से देश की जरूरतों के हिसाब से पूरा किया गया था,जबकि खाद्य सुरक्षा बिल पूरी तरह से वोट बटोरने के लिए लाया गया बिल लगता है.

-कृषि लागत और मूल्य  आयोग के अध्यक्ष अशोक गुलाटी को लगता है कि मौ जुदा स्तिथि में अध्यादेश शुरू में खराब लग सकता है ,लेकिन यह बाद में यह सकारात्मक परिणाम देने वाला हो सकता है .उन्होंने कहा कि उन राज्यों में जब तक हम पी डी एस व्यवस्था तय नहीं करते ,उत्पादन को स्थिर नहीं करते और भंडारण और परिवहन में निवेश नहीं करते ,तो उक्त लाभ कितने दिनों तक मिलेगा .उन्होंने कहा कि उन राज्यों में पी डी एस लीकेज रोकने की चुनौती सबसे बड़ी है,जहाँ गरीबी सबसे ज्यादा हैं.दूसरी सबसे बड़ी समस्या यह होगी कि खाद्य विधेयक की मांग को पूरा करने के लिए खाद्यान्न की बड़े स्तर पर खरीद से गेंहू और चावल के बाजार से निजी कारोबारी बाहर हो जायेंगे.

-वहीँ बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के आयुर्वेद संकाय के एसोसियेट प्रोफेसर आनन्द चौधरी ने कहा कि सरकार के अजेंडे में सिर्फ खाद्य सुरक्षा बिल ही क्यों है ?फ़ूड सेफ्टी और स्टेंडर्ड एक्ट-2006  के बारे में कोई क्यों नहीं बात करता .उन्होंने कहा की सरकार खराब और सस्ते अनाज को गरीबों में खपाना चाहती है. सभी पोलिटिकल पार्टी सिर्फ इस बिल के बहाने अपनी राजनीति चमकाने में लगी हुई है.


                       -जे एन यू से समाज शास्त्र में पी एच.डी कर रहे शोधार्थी संजय कुमार ने बताया कि इसमें कोई शक नहीं कि खाद्य सुरक्षा बिल आज की जरूरत है ,इससे लाखों करोड़ो लोगों की भूख  मिट सकती है.लेकिन उन्होंने यहाँ की खाद्य वितरण प्रणाली पर संशय जताते हुए कहा कि बिना इसे ठीक किये सारी परियोजना धरी की धरी रह जाएगी ,साथ ही उन्होंने कोंग्रेस की मंशा पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि चुनाव के समय ही कांग्रेस को अचानक गरीबों की चिंता क्यों सताने लगी ?
                     सरकार भले ही इस बिल को पास करवाने पर बिना ही संसदीय बहस पर अड़ गयी है,और राष्ट्रपति ने भी भले ही इस अध्यादेश पर अपनी मोहर लगा दी है .परन्तु इससे यूपीए-२ की मुसीबतें कम नहीं होने वाली है.
खाद्य सुरक्षा से जुडी सरकारी योजनाओ को छूट  देने के विकासशील देशों के संघठन जी-३३ के प्रस्ताव पर अमेरिका ने अपना रवैया सख्त कर रखा है और वह भूख और कुपोषण के शिकार लोगों की पोषण जरूरतों को पूरा करने के लिए दी जाने वाली सब्सिडी सीमा को लेकर भी रूचि नहीं दिखा रहा है.इससे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा क़ानून को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ एकता सकता है
                 विश्व व्यापार संगठन में अमेरिकी राजदूत माइकल पुनके ने विकासशील देशों के प्रस्ताव की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि भारत बेहिसाब सब्सिडी देकर कारोबार को धक्का पहुंचा रहा है और इससे एक नये तरह का संकट पैदा हो सकता है.

निष्कर्ष – लगभग सभी दलों और विशेषज्ञ ने खाद्य सुरक्षा बिल को आज की जरूरत बताया है ,लेकिन इस बिल को पास करवाने की हड़बड़ी ने यूपीए-२ की चुनावी महत्वकांक्षा को भी उजागर किया है .वहीँ  विपक्षी पार्टी भाजपा सहित तमाम दलों ने इस महत्वपूर्ण बिल पर संसद के दोनों सदनों पर चर्चा नहीं कराने को लेकर आलोचना की है . सभी एक्सपर्ट्स ने पहले देश की खाद्य वितरण प्रणाली को दुरुस्त करने की मांग की है.कुछ दलों ने इस बिल के लागू होने के बाद सरकारी खजाने पर जबर्दस्त आर्थिक बोझ पड़ने की आशंकाएं व्यक्त की है,जिससे अन्य महत्वपूर्ण योजना के  खटाई में भी जाने के आसार हैं.
श्रोत –दैनिक हिन्दुतान ,बी बी सी ,आज तक ,ग्राउंड रियलिटी(ब्लॉग,देवेन्द्र शर्मा )
धन्यवाद

राहुल आनंद
भारतीय जनसंचार संस्थान (2012-2013) ,नई दिल्ली  
   


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