बुधवार, 28 नवंबर 2012

शैक्षिक स्तर पर बदहाल भारत ........


भारत युवाओं का देश है और आने वाले समय में भारत युवा शक्ति के आधार पर विश्व शक्ति बनने के सपने भी देख रहा है . परन्तु क्या सिर्फ हम युवाओं की श्रमशक्ति के आधार पर ये सपना देख सकते हैं ???द्वितीय विश्व युद्ध में  जिस तरह  अमेरिका ने अपने परमाणु बम का प्रयोग जापान में किया था , उस समय ऐसा लगा था की जापान फिर शायद दुबारा विश्व की बड़ी  सैन्य शक्ति कभी नही बन पायेगा. ये बात सच भी हुई परन्तु जापान ने दूसरे तरीके से विश्व में अपना परचम  फिर से लहराया  .जापान ने अपने युवाओ को जागरूक और शिक्षित किया. पढाई से इतर वैकल्पिक रोजगार की शिक्षा दी और जापान विश्व के शीर्ष आर्थिक रूप से मजबूत देश में शामिल हुआ . भौगोलिक दृष्टि से अगर देखा जाये तो जापान भूकंप प्रभावित बहुत ही छोटा देश है फिर भी वहां के लोग तमाम मुश्किलों के बावजूद युवा शक्ति का सकारात्मक दिशा में उपयोग कर देश को खुशहाली के रस्ते पर ले गये.
                    

                    भारत के सन्दर्भ में देखे तो यहाँ प्रथिमिकी स्तर से ही शिक्षा का बहुत बुरा हाल है(कुछ निजी विद्यालयों को छोङ कर). आजादी के 65 सालो के बाद भी शिक्षा की स्तिथि में कोई ख़ास सुधार नहीं हुआ है. हम लगातार अपने पडोसी मुल्क चीन से इस मामले मे पिछङते चले गये .जहाँ 70 के दशक तक चीन हमसे शिक्षा के लगभग हर विभाग में पिछङा हुआ था ,वहीँ आज स्तिथि ठीक उसके उलट है .खासकर शोध कार्यों में भारत की स्तिथि और भी खराब है .इसी का कारण है की जिनके पास पैसा होता है या जो रिसर्च करना चाहते हैं वे विदेश जाना पसंद करते हैं .अभी हाल के ही दिनों में एक सर्वे में ये पता चला की विश्व के श्रेष्ठ 200 विश्वविद्यालय में भारत के एक भी विश्वविद्यालय नहीं है .इससे ज्यादा और शर्म की बात और क्या हो सकती  है ??? संयुक्त रास्त्र संघ में हम वीटो का अधिकार प्राप्त कर उन पांच चुनिंदा देशों की जमात में खड़े होने के लिए लालायित हैं ,लेकिन  विश्व शक्ति बनने के लिए जो बुनियादी अनिवार्यता है उनकी तरफ हमारा कोई ध्यान नहीं है
                                      हमारे देश के बड़े बड़े सम्मानित नेता विदेशो में पढ़कर तो अपनी शिक्षा की भूख मिटाने का प्रयास तो करते हैं पर जो सच में मेधावी है और जिन्हें वास्तव  में विश्व स्तरीय शिक्षा की जरूरत है , उनकी और सरकार का कोई ध्यान नही रहता है . उसके बाद सरकार प्रतिभा पलायन की बात भी करती है .ज्यादातर प्रतिभा को तो जन्म लेने से पहले हीं मार डाला जाता है और जो बमुश्किल बच जाता है वो फिर कभी विदेशों से वापस भारत आना नही चाहते हैं  .  नेता आखिर चिंता भी क्यों करे ?? वे तो अपने सगे –सम्बन्धियों को अच्छी शिक्षा दिला देते हैं तो फिर उन्हें देश के अन्य नागरिकों की चिंता करने की क्या जरूरत  है??
                                         
                         शिक्षा में प्रथिमिकी स्तर पर अगर हाल के दिनों में बिहार की बात करे तो पहले की तुलना में स्तिथि में कुछ सुधार जरुर हुआ है ,परन्तु ये नाकाफी है .सरकार वास्तव में शिक्षा की   स्तिथि सुधारने के बजाय अपनी स्तिथि सुधारना चाहती है .महज साईकिल,मिड डे मील और कुछ पोशाकों  का प्रलोभन देकर स्कूलों में भीड़ तो इकट्ठा की जा सकती है और वोट बैंक भी  बढ़ाया जा सकता है परन्तु अगर शिक्षक हीं योग्य न हो तो हम कैसी शिक्षा की कल्पना कर सकते हैं??? नितीश कुमार ने सत्ता में आते हीं अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए जल्दबाजी में सिर्फ प्रतिशत के आधार पर नियोजित शिक्षकों की बहाली  कर दी . जिस लालू यादव की बुराई करते नितीश कुमार नही थकते ,उन्हीं के समय चोरी करके पास किये हुए छात्रों को उन्होंने पढ़ाने का दायित्व सौप दिया और जो सही में योग्य शिक्षक थे वे कम प्रतिशत की वजह से चयनित नही हो सके . ऐसी में अगर प्राथमिक स्तर से शिक्षा की स्तिथि सही नही होगी तो हम उच्चस्तरीय शोध की बात कहाँ से सोच सकते हैं ???    
           प्रभावहीन बुनियादी शिक्षा के कारण हीं देश में पढ़े –लिखे बेरोजगारों की फ़ौज खङी हो रही है . य़ुवाओ को अच्छी शिक्षा नही मिल पाती है  जिस कारण उन्हें अच्छी नौकरी भी  नहीं मिल पाती है  . ऐसी स्तिथि में युवाओं के बिगड़ने के और गलत रास्ते में जाने के पूरे आसार होते हैं. कुछ युवा इसी कारण नशे की गिरफ्त में आते हैं और अपनी जिन्दगी बर्बाद कर लेते हैं.भारत में सबसे बड़ी समस्या ये है की यहाँ की जनसंख्या के हिसाब से अच्छे और विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय की संख्या नगण्य है . अभी हाल में हीं इंडिया टुडे में एक सर्वे में बताया गया था की हर साल जो लाखो  की संख्यां में इंजीनियरिंग पास आउट हो रहे हैं उनमे से 80 प्रतिशत ऐसी बच्चे हैं जो काम करने लायक ही  नहीं हैं .कुछ कॉलेजों की हालत सही है वरना बाकि कॉलेज मोटी फीस वसूल के सिर्फ डिग्री भर देने का काम करते  हैं .
                                                  भारत में अभी जरूरत है ऐसी शिक्षा पद्धति  की जो युवाओ को बचपन से हीं रोजगार की शिक्षा दे और जो रिसर्च करना चाहते हैं उन्हें भरपूर वित्तीय सहायता भी प्रदान करे.  मसलन कोई अगर खेल में जाना चाहता है तो उसे बचपन से हीं खेल की सामग्री उपलब्ध करायी जाये और माता ,पिता शिक्षको द्वारा उचित मार्गदर्शन भी दिया जाये .  अगर सच में भारत को विश्व शक्ति बनाना है तो बुनियादी स्तर से लेकर रिसर्च विभाग तक पुरे सिस्टम को दुरुस्त करना होगा . अगर शिक्षा के स्तर को जल्दी सुधारा न गया तो  विश्व स्तर पर हम  लगातार पिछङते जायेंगे और  पढ़े –लिखे युवाओं की ऐसी फ़ौज तैयार कर लेंगे जिसकी कार्य क्षमता नगण्य होगी..............
   
धन्यवाद
राहुल आनंद                        

रविवार, 25 नवंबर 2012

बोझ .......


बचपन मे जब भी कोई शादी या उत्सव होता तो मुझे ये सोचकर काफी गुस्सा आता था की कोई भी निर्णय मुझसे पछकर क्यों नहीं लिए जा रहे हैं ??? मुझे लगता था की शादी-ब्याह के मौके पर बच्चों को मिठाई का प्रलोभन देकर सिर्फ काम करवाया जाता है और अगर बड़ों को ज्यादा तरस आ गया तो बच्चों को डांस करने का मौका भी मिल जाता था . 10-12 साल की उम्र से हीं इस बात को लेकर मै अपने आप को उपेक्षित महसूस करने लगा था .उपेक्षित होने के बोझ तले मै दबता जा रहा था .मेरी उपेक्षा तब कुंठा बन गयी होती अगर सही समय पर मेरे घर के सबसे बड़े भैया ने इसे ना पहचाना होता .
                      उन्होंने कहा अरे बेवकूफ तू अभी क्यों उदास होता है .अभी तो तेरे सामने पूरी जिन्दगी पड़ी हुई है .खुल के जियो और जिन्दगी के मजे लो . मैंने उन्हें बड़े हीं रोनी सूरत बना के कहा साला ये भी कोई जीना है ,जहाँ मेरी कोई सुनता हीं नहीं. मैंने भैया से कहा मुझे भी बड़ा होना है ,मुझे  भी लोगों पर आर्डर पास करना है  .अगर ऐसा कोई उपाय है तो बताओ भैया . ऐसी घुटन भरी जिन्दगी से मुझे मुक्ति दिलाओ  भैया . मेरे भैया ने मुझपे तरस कहा कर  कहा ,तू घबरा मत बेटा ,अभी तुझे बहुत जल्दी पड़ी है न बड़े होने की . तू भी बड़ा होगा और बोझ तले दब जायेगा .तब मै तेरे से बात करूंगा
                             मुझे तभी समझ नही आया की ये बोझ क्या होता है??? मुझे लगा की शायद मेरे यहाँ जब धान का समय आता है तो खेत में काम करने वाले सर पर धान का बोझा ढो कर लाते थे  , भैया शायद उसी बोझ की बात कर रहे होंगे . पर मुझे क्या पता था की ये बोझ ऐसी चीज है जो उम्र दर उम्र बढती हीं चली जाएगी .इस बोझ का रिश्ता फेविकोल के जोड़ से भी ज्यादा मजबूत हो जायेगा. अब तो बोझ के साथ जीने की आदत सी हो गयी है .बड़े होने का सारा शौक धुँआ –धुँआ हो गया . बचपन की जितनी भी हेकरी थी सब रफ्फुचक्कर हो गयी.
               हम युवी बड़ें हीं कल्पनाशील होते हैं ,कल्पनाओं की दुनिया में हम अक्सर खो जाते है; बड़े बड़े सपने देखने लगते हैं और लोगों को दिखाते भी हैं , यहीं से शुरुवात होती है बोझ की  . ये बोझ किसी भी प्रकार के हो सकते हैं .पर जो शुरुवाती बोझ  होते  है वो हमारे घर से हीं शुरू होते  है .माँ-बाप हमे पढ़ाते हैं ,हमारे साथ ढेर सारी उम्मीदे जोड़ लेते हैं . बस हमारा बोझ तले दबना यहीं से शुरू हो जाता है और हम फिर कभी  इस बोझ से बाहर नहीं निकल पातें . जब कभी छोटे बच्चो के स्कुल बेग के बोझ  को कम करने के लिए आवाज उठती है तो ,मुझे बहुत हसीं आती है की लोग इस बोझ को तो देख कर तो बच्चो पर तरस खा रहे हैं ,पर जो भयानक अदृश्य बोझ के तले हम दबे हैं उसका क्या???
                                   घर से जब भी एटीएम में पैसे आते हैं यह बोझ काफी शर्मिंदगी के साथ और भी बढ़ जाता है . जब कभी माँ हमारे पड़ोसी के किसी बच्चे के इंजिनियर या डॉक्टर बन जाने पर हमारी तुलनात्मक अध्ययन शुरू करती है तो यह बोझ हमे और भी मुहं फाड़कर चिढाती  है .आजकल एक नया बोझ मार्केट में आया है .अगर आपके किसी परिचित या दोस्त के पास कोई गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड है और  आप अगर इस कमी से जूझ रहे हैं तो ये बोझ तो दुगुना बढ़  जाता है .युवाओ के लिए इससे बड़ा बोझ और क्या हो सकता है ??
                              आजकल हमारे हिंदी पत्रकारिता के छात्र बोझ तले कितने दबे हैं ये तो हमे पता नही ,पर भैया हम तो बहुते बोझ तले दबे हैं .हमारे ऊपर बोझ है एसाइनमेंट बनाने का , हमारे ऊपर बोझ है हमारे गाँव के पड़ोसी का,हमारे ऊपर बोझ है परीक्षा में अच्छा नम्बर लाने का ,हमारे ऊपर बोझ है इंग्लिश जर्नलिज्म और आर.टी.वी . के बच्चो जितना फर्राटेदार इंग्लिश बोलने का ,हमारे ऊपर बोझ है क्लास में ज्यादा बोल पाने का (उ क्या है न भैया हमको कोई कहे हैं की आप खाली  ब्लोगे में बोलते हैं,क्लास में नही ), और सबसे बड़ी बात हमारे ऊपर बोझ है प्लेसमेंट पाने का .
                              तो देखा दोस्तों एक युवा बोझ तले कितना दबा हुआ होता है ,पर फिर भी युवा हीं इस बोझ की गठरी को उतार के फेक भी देता है और खुश रहता है  . हम में बहुत उर्जा है बस जरूरत है उस बोझ को प्रेरणा बना कर जीवन में आगे बढ़ने की . जितने भी लोगों ने कुछ अलग और अच्छा कर दिखाया हैं उन सभी के जिन्दगी में उतने हीं ज्यादा बोझ थे . दुनिया उसी को याद करती है जो बोझ को बोझ नहीं मानते ...
धन्यवाद
राहुल आनं


शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

एक अधूरी प्रेम कहानी .............


          
 हेलो  ,मै विपिन बोल रहा हूँ..  25 अगस्त की रात ग्यारह बजे मेरे दोस्त का फ़ोन आया जो काफी परेशान लग रहा था . उसने बताया की वह कॉलेज के काम से मधेपुरा(बिहार का एक जिला) गया हुआ था ,पर उसका काम नहीं हो पाया ,जिस वजह से उसे कटिहार स्टेशन पर रात गुजारनी पड़ेगी . मैंने उसे पास के किसी परिचित के पास जाने की सलाह दी  , पर उसने साफ़ मना कर दिया .विपिन ने कहा उसे कल सुबह जल्दी ट्रेन पकड़कर घर जाना है और उसने फ़ोन रख दिया . उस समय मुझे ये नही पता था की यह विपिन से मेरी आखिरी बातचीत थी .अगली सुबह 8:30 बजे गाँव के ही एक दोस्त ने फ़ोन कर के  बताया की घर आने के दौरान टेम्पू पलटने से  विपिन की दुर्घटना हो गयी है .उस समय भी मै चाहता तो विपिन से बात कर सकता था ,लेकिन मैंने सोचा उसे आराम करने दिया जाये और मैंने विपिन से बात नही की . 11:30 बजे फिर से फ़ोन आया की मेरा सबसे अच्छा दोस्त अब इस दुनिया में नही रहा .
                                    उस समय मेरे आई .आई .एम .सी. में आये हुआ करीब एक महीने हीं हुए थे .मै पूरी तरह टूट चूका था .मेरा एक बार मन किया की मै  सबकुछ छोड़ के दिल्ली से  घर चला जाऊं पर उसी की कही बातों को याद करके मै यहाँ रुक गया और अपनी पढाई जारी रखी. विपिन सामान्य कद-काठी का बेहद हीं अनुशासित लड़का था . वह बहुत ही साफ़ दिल का लड़का था .मुझे यहाँ बार –बार था लिखने में काफी बुरा लग रहा है , क्योंकि ये विश्वास करना अभी भी मुश्किल है की विपिन अब इस दुनिया में नही है .
                              विपिन की जिंदगी में दो व्यक्ति काफी महत्वपूर्ण थे .एक खुद मै और दूसरा उसकी प्रेमिका संगीता(बदला हुआ नाम). संगीता मेरे छोटे भाई के दोस्त पंकज की बहन थी. हालांकि पंकज भी मेरा अच्छा दोस्त था . पंकज और विपिन दोनों पटना में रहते थे और एक ही गाँव के होने के कारण दोनों में अच्छी  जान –पहचान भी थी. अक्सर विपिन जब भी घर जाता तो पंकज उसे घर से कुछ लेना को कह देता था. इसी क्रम में विपिन और संगीता दोनों पास आ गये और दोनों में प्यार हो गया . परन्तु इस प्यार का सबसे बुरा असर मुझपे पड़ा . विपिन और पंकज दोनों अब एक दूसरे के दुश्मन बन गये . जब भी मै दोनों में से किसी एक के पास जाता तो कोई एक नाराज हो जाता .मुझे काफी दुविधा का सामना करना पड़ता था ,परन्तु विपिन मेरे दिल के काफी करीब था और मै उसी के पास ज्यादा समय बिताता था.
                           एक दिन मै विपिन के पास गया , उसने मुझे बताया की उसे संगीता से प्यार हो गया है और वह उसके बिना नहीं जी सकता है .मुझे बहुत आश्चर्य हुआ  की ये सब इतनी जल्दी कैसे हो गया?? पर जब मैंने विपिन के साथ काफी वक़्त बिताया तो मुझे अहसास हो गया की ये दोनों सच में एक-दूसरे को बहुत प्यार करते हैं . वो दोनों फ़ोन पर  घंटो बात करते थे ,हालांकि जब मै विपिन के पास होता  था तो वो संगीता से बात करने से बचता था.  मै जब भी उनदोनो को बात करते हुए देखता था तो मुझे बहुत खुशी मिलती थी, वो ऐसी खुशी थी जिसे  शायद शब्दों में बयाँ कर पाना काफी मुश्किल है . दिन बीतते गए और उनदोनो में प्यार काफी गहराता गया . धीरे –धीरे ये बात हमारे गाँव में फैलती चली गयी .आगे वही हुआ जो अमूमन हमारे  सभ्य समाज में होता है . दोनों तरफों से एक दूसरे पर छींटा-कसीं  का खेल शुरू हो गया . फिर उनदोनो ने गाँव में मिलना जुलना साफ़ बंद कर दिया, अब सिर्फ उनदोनो में फ़ोन पर बातें होती थी .
                                         कुछ दिन पहले जब छुट्टियों में मै विपिन के पास गया तो देखा विपिन अब काफी बदल गया है ,वह अब सरकारी नौकरी पाने के लिए जी-तोड़  परिश्रम कर रहा है .मैंने जब विपिन से इसके बारे में पूछा तो उसने बताया की संगीता के घर वाले संगीता पर शादी का दबाव बढ़ा रहे हैं ,इसलिए वह चाहता है की जल्दी से सरकारी नौकरी करके संगीता से शादी कर ले .विपिन ने बताया की अब मै संगीता से बहुत कम बात करता हूँ ताकि अपना पूरा ध्यान पढाई मे लगा सकूं . मैंने सच में नोटिस किया की अब संगीता भी काफी कम बात करती थी .  उनलोगों ने बकायदा अपनी बातचीत का समय निश्चित कर रखा था .मैंने पाया की संगीता  तय किये गये समय में ही विपिन को फ़ोन करती थी .न एक मिनट आगे न एक मिनट पीछे . 
                                      मुझे बहुत आश्चर्य हो रहा  था क्या सचमुच प्यार ऐसा हो सकता है की एक आदमी की पूरी जिन्दगी हीं बदल के रख दे??? क्या सचमुच प्यार हमारे लिए  प्रेरणास्रोत का काम कर सकता है ??? कल तक जो लड़का पढाई से कोसों दूर भागता था आज वो इतनी पढाई कर  रहा है की उसके हॉस्टल में रहने वाले हर लड़का चकित हैं .कल तक जो लड़का ठीक से इंग्लिश अखबार नही  पढ़ पाता था , आज वो मुझसे धरल्ले से इंग्लिश में बात कर रहा था .मैंने प्यार में लड़के –लड़कियों को बिगड़ते हुआ देखा था . पढाई –पैसा सबकुछ बर्बाद करते देखा था .खुद मेरा अनुभव इस मामले में हमेशा  खराब रहा था. परन्तु मैंने ऐसा प्यार पहली बार देखा था जो सचमुच जीवन में आगे बढ़ने ,कुछ करने की प्रेरणा देती हो .

                                   आई.आई.एम.सी. में आने के बाद विपिन से मेरी बातचीत कम ही हो पाती थी ,पर जब भी बात होती थी तो मै उससे संगीता के बारे में पूछता था. एक दिन विपिन ने मुझसे कहा की वह मेरे पास कुछ दिन के लिए आना चाहता है और इस बात के ठीक १० दिन बाद विपिन चल बसा .जैसे हीं मेरे दोस्त ने विपिन की मौत की खबर मुझे दी थी ,मेरे मन में सबसे पहले यही ख्याल आया की अब संगीता का क्या होगा ??? जिस लड़की ने विपिन को अपना सबकुछ मान लिया था ,वह अब उसके बिना कैसे रहेगी ??मेरे  भाई ने मुझे फ़ोन कर के बताया था की संगीता के घर के पास से बहुत जोर से रोने और चिल्लाने की आवाज आ रही थी ,बाद में पता चला की वह आवाज संगीता की थी .मैंने तुरंत हीं पंकज को फ़ोन किया और कहा  की जो भी गिले-शिकवे तुम्हे विपिन को लेकर थे उसे भुलाओ,और अपनी बहन को संभालो . अन्यथा वो कुछ भी अनुचित कदम उठा सकती है .उसने मुझे आश्वासन भी दिया और उचित कदम उठाने की बात कही . कुछ दिन बाद पता चला की संगीता के मम्मी-पापा संगीता को उसके नानी घर ले गये हैं और उसके बाद संगीता का कुछ पता नही चल पाया है . पंकज से पूछने पर वह मुझे इतना ही बताता है की उसकी बहन जहाँ भी है अच्छी है .पर ये मै अच्छी तरह  समझ सकता हूँ कि संगिता विपिन के बिना कैसे  जी रही होगी.
                                      मैंने एक बार विपिन से पूछा था की तुम्हारा नाम तो विपिन कुमार है ,फिर भी तुम हमेशा हर जगह विपिन आनंद क्यों लिखते हो ??? उसने कहा क्युंकी तुम्हारा नाम राहुल आनंद है इसलिए मै अपने नाम के अंत मे आनंद लगाना पसंद करता हूँ .जब भी  मुझे ये बात याद आती है मेरे आसूं नही रुक पाते .मै बहुत रोता हूँ ,रो तो मै आज भी रहा हूँ ,पर इस बात पर नही की मैंने अपना सबसे अच्छा दोस्त खो दिया जबकि इस बात पर  की मेरे दोस्त का प्यार अधुरा रह गया . मुझे आज अगर किसी की चिंता है तो उसकी माँ  की जिन्होंने अपना जवान बेटा  खो दिया ,मुझे आज अगर चिंता है तो संगीता की जिसके सामने पूरी जिन्दगी पड़ी हुई है ……..

रविवार, 18 नवंबर 2012

                           ये कैसी असमानता ???
आजादी के 65 सालो में हमने तेजी से तरक्की तो की लेकिन उतनी ही तेजी से देश की एक बड़ी आबादी दूर छूटती चली गयी .चमकते भारत की सच्चाई ये है की देश के 25 प्रतिशत आमदनी पर बस कुछ 100 परिवारों का कब्ज़ा है , जबकि हमारी 75 प्रतिशत आबादी रोजाना 20 रूपये से भी कम पर गुजर – बसर करने को मजबूर है , इस अंतर से जन्मा अविश्वास और आक्रोश बढता जा रहा है और शायद  वक़्त हमारे हाथ से फिसलता जा रहा है – चक्रव्यूह फिल्म के अंत में ये वाइस ओवर मुझे इस फिल्म की सबसे अच्छी बात लगी .
                               ये कैसी असमानता है जो ख़त्म होने का नाम ही नही ले रही है .आखिर ये दिनों दिन बढती क्यों जा रही है ???गरीबो और अमीरों के बीच बढती खाई का ऐसा उदाहरण  विरले हीं किसी और देश में देखने को मिलता है .आखिर ये कैसा विकास है जो कुछ चुनिंदा लोगो और वर्गों तक ही सिमित  है .
                 उदारीकरण आने के बाद भले हीं देश की सरकारी खज़ाने की खस्ताहाल हालत में सुधार आयी हो ,परन्तु इससे गरीबो को कोई खास फायदा नही हुआ . उस समय से हीं सरकारी खज़ाने में गिद्ध जैसी नजरे टिकाये लोगो ने जम कर लुट मचायी .लूट आज भी मच रही है ,जम कर मच रही है . बस हर  बार  लूट का  नाम अलग –अलग  होता है .कभी बोफोर्स के नाम पर,कभी कॉमनवेल्थ गेम के नाम पर, कभी २ जी स्पेक्ट्रम के नाम पर ,कभी कोयला घोटाले  के नाम पर और ना जाने लूट के कितने प्रकार  हैं . ये तो ऐसी लूट है जो देश की जनता के सामने है, पर जो छुपा के लूट का खेल चल रहा है वो तो किसी को भी मालूम नही चल पाता है.
                  ऐसी में  देश का एक बड़ा वर्ग जिनकी सत्ता तक  पहुँच नही थी,वह आर्थिक रूप से पीछे होते चली गयी और आज तक गरीबी और उपेक्षा का दंश झेल रही है .खुद राजीव गाँधी ने कहा था की   भारत में भ्रष्टाचार की जड़े इतनी गहरी है की विकास के लिए अगर १ रुपया भेजा जाता है तो जरूरतमंद के पास मुश्किल से १० पैसा पहुँच पाता है. जो लोग सीधे सरकारी खजाने की लूट में शामिल नही हो सके उन्होंने अपने स्तर पर  लूट मचायी .
                             भारत में ऐसे बहुत ही कम कार्यालय हैं जहाँ बिना घूस के ही काम हो जाते हैं , ये एक ऐसी गलत पद्धति विकसित हुई है जो हमेशा गरीबो को मुँह चिढ़ाती है . जिनके पास पैसा होता है वह आराम से अपना काम करवा के निकल जाते हैं और जो गरीब हैं वो कई दिनों तक अपनी एड़ियां घिसने के बाद भी अपना काम नही करवा पाते हैं ..
                               बहुत सारे सज्जन कहते  हैं अब पहले से स्तिथि काफी सुधरी हैं . हाँ ,ये सच है स्तिथि पहले से सुधरी है ,पर किसके लिए, जो पहले से अमीर थे वे और भी अमीर होते चले गये और जो गरीब थे वे और भी गरीब होते चले गए . अगर ऐसा नही होता तो नक्सलवादी हमारे देश में अपनी जड़े गहरी नहीं कर पाते . आज नक्सलवाद सरकार के लिए सिरदर्द बनी हुई है .उन इलाको में सरकार के प्रति काफी गुस्सा है . आखिर गुस्सा हो भी क्यों न ??? इन इलाको में सरकार लोगो को मुलभूत आवश्यकता पहुँचाने में तो नाकाम रही हीं है , और जब जब उनकी जमीन छीन कर कोई फैक्ट्री खोलना की बरी आती है तो सरकार उद्योगपतियों  के पक्ष में खरी दिखती है.
                                              बचपन मे मैंने अपने शिक्षक से स्वाभाविक सवाल पूछा की सर कोई गरीब और कोई अमीर क्यों होता है ??? क्यों हमारे यहाँ काम करने वाला अमलवा मेरे साथ मेरे बिछावन पर साथ बैठकर टी. वी. नहीं देख सकता ??? सर ने बोला ये जो पैसे वाले लोग होते है न ये गरीबों का खून चूस कर ही अमीर बनते हैं . जितने भी बड़े –बड़े मकान होते हैं न उसके आस पास गरीबो की झोपडिया  होतीं है .ये लोग इन्ही को बेवकूफ बना कर अमीर बनते हैं .बेशक उनकी बातें पूर्वाग्रह से ग्रसित थी  ,पर अब जब कभी मै वसंत कुञ्ज या साकेत के डी.ल .एफ  माँल जाता  हूँ और उसके सामने की  झोपड़ियाँ देखता हूँ तो सर की कही बात सच लगने लगती है .
                                 आर्थिक विकास का ये कैसा मॉडल है जो देश में चका-चक सड़के ,बड़े-बड़े मॉलो का निर्माण तो करवा रही है  लेकिन वहीँ देश में ऐसी बहुत सारे लोग ऐसें  है जो रात में भूखे पेट और बिना छत के सोने को मजबूर हैं .आर्थिक विकास का ये कैसा मॉडल है जो सिर्फ बड़े –बड़े शहरो तक ही सारा विकास पहुंचा रही  है और देश में ऐसी बहुत सारे गाँव हैं जहाँ ना सड़के हैं ,न ही  बिजली है .
                हमारे देश के ऊपर 345.8 अरब डॉलर का कुल विदेशी ऋण है जो की जी.डी.पी.का २० प्रतिशत है . इसके बावजूद हाल के दिनों में यु .पी.ए . सरकार में लगातार हो रहे घोटाले ने देश की सरकारी खजाने पर जबरदस्त असर डाला है .यह देश की समेकित विकास के लिए बहुत बड़ा खतरा है .नरेगा जैसी योजनाओ ने कुछ उम्मीद की किरण जरुर जगायी थी ,परन्तु यह योजना भी भ्रष्टाचार की भेट चढ़ गयी .
                    देश के सामने चुनौती है भारत को वैश्विक परिदृश्य में स्थापित करने की और साथ में देश के सभी नागरिको के बीच आर्थिक समानता स्थापित करने की . यह असंभव नहीं है, परन्तु सरकार को देश के अंतिम हिस्से तक ,जहाँ के लोग अभी तक उपेक्षित हैं वहां शिक्षा,रोड और काम पहुँचाने का जोरदार काम करना होगा , नही तो देश में गृहयुद्ध जैसी स्तिथि पैदा हो सकती है और भारत की धरती को अपने ही संतानों के खून से लाल होना पर सकता है ,जो भारत जैसे लोकतंत्र देश के लिए कतई अच्छी बात नही होगी  ......
धन्यवाद
राहुल आनंद

शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

             जे .न .यु. का छोरा ,जिसने दिल सबका तोड़ा   
एक शाम जब मै जे.न.यु. के साबरमती ढाबे की ओर से गुजर रहा था तो मेरे कानो में कुछ आवाज पहुँच रही थी -  लाले लाले ,लाल सलाम ,जे.न. यु. की लाल मिट्टी को लाल सलाम – एक लड़की मर्दाने आवाज में उदघोष  कर रही थी और उसके आस पास खड़े लोग लाल सलाम ,लाल सलाम बोल कर उनका उत्साहवर्धन कर रहे थे .
                         पास जाने पर पता चला की वहां कुछ वामपंथी विचारधारा से प्रेरित छात्र­-छात्रा हरियाणा में हो रहे बलात्कार की बढ़ रही घटनाओ का विरोध कर रहे हैं.मुझे बहुत अच्छा लगा की जे.न.यु. में पढ़ने वाले छात्र ना सिर्फ राजनितिक बल्कि समाजिक रूप से भी बहुत जागरूक होते हैं .ना सिर्फ आस पास बल्कि पुरे दुनिया में हो रही गलत घटनाओ का यहाँ विरोध भी होता है.
                                             यह सब सोचते हुए मुझे एक भैया(मेरे दोस्त का भाई) की याद आने लगी जो की शायद 1998 या 1999 में जे.न.यु. स्नातक करने आये थे . उस समय मै बहुत छोटा था .पर इतना जरुर याद है की उनके पापा बहुत खुश थे .वे बहुत ही गर्व से कहते थे की उनका बेटा कटिहार (बिहार का एक जिला ) में पहला लड़का है जिसका चयन जे.न.यु. में चीनी भाषा सिखने के लिए हुआ है.उनका नाम सुमित(बदला हुआ नाम) है  और वो काफी प्रतिभाशाली हैं.
                                      उनके घर की आर्थिक स्तिथि उस समय से ही काफी खराब थी और आज भी कमोबेश ऐसी ही स्तिथि बनी हुई है. उनके पापा ये सोच कर काफी खुश थे की चलो बेटा का जे.न.यु. में चयन हो गया है तो घर की माली हालत सुधरेगी . उनके पापा किसी तरह उन्हें पैसा भेजते रहें ,हालांकि जे.न.यु. में फीस वेगैरह तो काफी कम है परन्तु इनके आलावा भी जो खर्च बाहर में रहने में होता है ,सुमित भैया के पापा वो भी काफी मुश्किल से भेज पाते थे.
                                          समय बीतता गया और मै भी बड़ा होता गया .अब मै चीजों को अच्छे  तरीके से समझने लगा था. 10 वी पास करने के बाद मै +२ करने की चाहत से दिल्ली गया .हालाँकि मैंने दिल्ली में एडमिशन नही लिया पर मुझे सुमित भैया के पास रहने और ज.न.यु. को जानने का मौका मिला,मैंने यहाँ अनुभव किया की सुमित भैया अब काफी बड़ी बड़ी बाते करते हैं ,बहुत सारी बाते तो मेरी समझ में नही आ रही थी . पर ये याद है की वो बार बार समाज को बदलने की बात कर रहे थे
                   ये सब देखकर मेरा भी मन जे.न.यु. में पढने को करने लगा .खासकर ज.न.यु. का खाना खा कर तो मै बहुत खुश था .क्युंकी इस से पहले मै  किशनगंज के हॉस्टल में रहता था  तो वहां का खाना इतना अच्छा नही था. मैंने सुमित भैया से जब जे.न,यु में पढने की बात कही तो वहां मौजूद उनके दोस्तों में से एक ने बोला - जे.न.यु. में पढना है तो जवानी की क़ुरबानी देनी पड़ेगी और घर को भूलना पड़ेगा .नही भी भूलना चाहोगे तो भी खुद बा खुद भूल जाओगे – उन्होंने बड़े ही रहस्यमयी मुस्कान के साथ हँसते हुआ कहा .
                                उसके बाद मै बोकारो चला गया और छुट्टियों में घर गया तो मेरे दोस्त ने बताया की सुमित भैया ने  नौकरी( दरअसल स्नातक करने के बाद सुमित भैया को अच्छी-  खासी नौकरी मिल गयी थी ) छोर दी  है और उन्होंने एम.ए समाजशास्त्र से करने का फैसला किया है .अब सुमित भैया सिविल सेवक बनना चाहते थे . उधर मेरे दोस्त की घर की स्तिथि दिनों दिन बिगडती जा रही थी . उनलोगों को पैसे की सख्त जरूरत थी. सुमित भैया के पिताजी ने सोचा देर से ही सही अगर "आइ. ए. एस" बन गया तो घर की स्तिथि जरुर सुधर जाएगी .
                                             समय बीतता गया और सुमित भैया के माता –पिता दोनों का स्वास्थ्य  खराब होने लगा  ,सुमित भैया की माँ गठिया और पिताजी मधुमेह और ब्लड प्रेशर से ग्रसित हो गये . इन सब चीजों को देखकर मेरा दोस्त घबरा गया और उसने शादी करने की फैसला किया  ताकि माँ के ऊपर से काम का बोझ कुछ कम हो सके . शादी  की तारिक निश्चित हो गयी और जब  सुमित भैया को फ़ोन किया गया तो, उन्होंने कहा मै घर नही आ पाउँगा ,एक महीने बाद मेरी  आई.ए .एस की परीक्षा है. मेरा दोस्त मुझे पकड़कर फूट फूट रोने लगा .वहीँ पास बैठी उसकी माँ भी जोर जोर से रोने लगी .उनकी माँ ने कहा सुमित के लिए हमने क्या –क्या नही किया ,पर न तो वो अब घर आता है और न ही हमारी बात मानता है . मुझे भी सुमित भैया पर बहुत  गुस्सा आया की आखिर वो किस समाज को बदलने की बात करते हैं जब उनके घर के लोग ही उनसे खुश नही हैं.
                                           जब मै बनारस में स्नातक द्वितीय वर्ष का छात्र था तो मै किसी काम से दिल्ली गया और सुमित भैया के पास जे.न .यु. में ठहरा .उस समय सुमित भैया की तबियत खराब चल रही थी .डॉक्टर के पास ले जाने पर पता चला उन्हें बहुत ज्यादा शराब पीने से टी.वी. हो गया है .मुझे बहुत आश्चर्य हुआ की क्या ये सचमुच वही सुमित भैया हैं .उस साल उनका सिविल सेवा में अंतिम अवसर  था और सुमित भैया ने अपनी पी.एच .डी. को रोक कर सिविल सेवा की  तैयारी  करनी शुरू कर दी  .
                                   वहीं दूसरी तरफ उनके पापा एक दिन खेतो में काम कर रहे थे और अचानक चल बसे .किसी तरह सुमित भैया घर आये और अपने पिता को मुखाग्नि दी .सुमित भैया इस बार पुरे तीन साल बाद घर आये थे .उनकी माँ ने कहा तू अब कहीं नही जायेगा ,यही कोई अच्छी सी लड़की देखकर तेरी शादी करा देंगे . कम से कम मरते वक़्त तेरा मुंह तो देख कर मरूंगी . तुम क्या समझोगी?? आज तक कुछ समझी हो जो अब समझोगी –सुमित भैया ने अपनी माँ को झिरकते हुआ कहा और दिल्ली का टिकट बनाने निकल पड़े
                         कुछ दिन बाद सिविल सेवा का रिजल्ट आ गया और सुमित भैया का चयन नही हो पाया .लगभग २ महीने तक  उनका फ़ोन बंद रहा .इधर इनकी माँ का रो रो कर बुरा हाल हो गया था की कही सुमित ने कुछ अनहोनी तो नही कर ली .इसलिए मेरा दोस्त जे.न.यु. गया,उसने मुझसे उनका रूम न. और हॉस्टल  पुछ लिया  था . जैसे ही वह अपने भाई के रूम  पंहुचा तो उसने देखा एक लड़की उनके बेड पर बैठी हैं. कुछ देर बाद वो चली गयी तो मेरे दोस्त ने पूछा की वो कौन थी .सुमित भैया ने झिरकते हुआ जवाब दिया की तुम्हे इससे क्या मतलब ? तुम जाओ अपने बीवी के पल्लू में छुपे रहो .तुम्हे शर्म नही आती की तुमने मेरे से पहले कैसे शादी कर ली ??? इस पर जब मेरे दोस्त ने कहा इसमें तम्हारी भी सहमती थी और शर्म तो तुम्हे आनी चाहिए की वहां घर में माँ तम्हारा राह देख रही है और यहाँ तुम मस्ती कर रहे हो.इस बात पे सुमित भैया ने उसे थप्पर मार दिया .
                                     मेरा दोस्त बमुश्किल से वहां एक दिन और रह पाया और घर चला गया .मेरा चयन संयोग से आई.आई.एम .सी. में दो-दो साक्षात्कारों के लिया हो गया और मै सुमित भैया के पास साक्षात्कार से पांच दिन पहले  ज.न.यु. आ गया . सोचा कुछ मार्गदर्शन भी मिल जायेगा .बात होने के दौरान उन्होंने बताया की वो पी .एच.डी  पूरी करके सक्रिय राजनीति मे  भाग लेंगे .मैंने कहा भैया मेरा मन भी  आई .ए एस .बनने  को करता है . इस पर उन्होंने कहा की आई .ए .एस कभी नही बनना.ये लोग सिर्फ नेताओ का तलवा चाटते हैं,मेरे लगभग सभी आइ.ए एस  दोस्त यही कर रहे है. इसपर मैंने मन ही मन में सोचा जब आपको इतना पता ही था तो इसकी तैयारी हीं क्यों कर रहे थे? क्यों इतने पैसे बर्बाद किये ?आपके पिताजी तो यही राह देखते देखते स्वर्ग सिधार गये की मेरा बेटा आई.ए.एस बनेगा .पर मै कुछ नही बोल पाया .
                      आइ आइ एम सी में पहले साक्षात्कार के ठीक एक दिन पहले मेरी उनसे कुछ बातो पर बहस हो गयी.बात ये थी की वो कैसी राजनीति करेंगे ये बता रहे थे ,उनकी बातो से मुझे घोर आपत्ति थी .वे कह रहे थे की कटिहार की जनता बहुत भोली है वहां जाऊंगा और निर्दलिये  से चुनाव लडूंगा. चुनाव से ठीक पहले लोगो के बीच जाऊंगा और ढेर सारे पैसे ,दारु बाटूंगा ,और चुनाव जीत जाऊंगा .मेरे पास डिग्री ही इतनी है की लोग मुझे तुरंत वोट दे देंगे . इसपर मैंने कहा आप अपनी सारी  डिग्री जला दीजिये ,ये किसी काम का नही है. उन्होंने मुझे कहा तुम अभी भी बेवकूफ हो और दुनियादारी नही समझते हो . तो फिर मैंने इतराते हुआ कहा अगर मै  बेवकूफ होता  तो मेरा आई.आई.एम.सी में कभी चयन नहीं होता और मै अगले दिन आई आई एम सी साक्षात्कार देने पहुंचा और दुबारा फिर कभी सुमित भैया के पास नही गया  .........
              तो दोस्तों कैसी लगी ये कहानी ???? कई बार हमारे जीवन में ऐसे आदमी मिलते हैं जो बाते तो काफी बड़ी बड़ी करते हैं मगर वो अन्दर से खोखले होते हैं .जब आप उनकी जिंदगी को करीब से देखेंगे तो सच्चाई मालूम पड़ती है .अक्सर समाजवाद, वामपंथ. हिन्दूरास्त्र  की बड़ी बड़ी बाते करने वाले लोग बड़े बड़े मॉलो और पबो में तथा विदेशी समान खरीदते आपको दिख जायेंगे.
                                मेरी इस कहानी में भले ही मुख्य किरदार सुमित भैया थे परन्तु मुख्य हीरो मेरा दोस्त ही था जो भले ज्यादा पढ़ा  लिखा नही था परन्तु अच्छे और बुरे की समझ  उसे उसके भाई से ज्यादा थी.  समाज के लिए कम पढ़ा लिखा या निरक्षर आदमी से ज्यादा खतरनाक है  "पढ़ा लिखा मूर्ख" . मेरे ख्याल से सुमित भैया ना ही अपने परिवार के हो सके और ना ही समाज के .इधर सुना है की सुमित भैया प्रोफेसर बन गए हैं बहुत सारी  शुभकामनाये हैं उनको .. परन्तु अब देखना ये है की वह अपने विद्यार्थी को समाज बदलने की कैसी शिक्षा देते हैं. 
    धन्यवाद .................
    राहुल आनंद

मंगलवार, 13 नवंबर 2012

                      जुली..एक दर्द भरी दास्तां    

भैया, मै आपके साईकिल को ठेलूं – एक पतली सी लड़की ने मुझसे बड़ी हीं  उम्मीदों के साथ पूछा . मैंने उसे अपने सिर को हिला कर सहमती प्रदान की .उसके बाद वह मेरे साईकिल  को करीब आधे घंटे तक लगातार ठेलती रही . मैं साईकिल पर बैठकर भी उतना खुश नही था जितना वो मेरे साईकिल  को ठेल कर खुश थी . यह बात उस समय की जब मै 11 साल का था और उस लड़की की उम्र करीब करीब मेरे से 2 -3 साल छोटी तो जरुर  रही  होगी .उसका नाम जुली था और वो मेरे घर घरेलू काम करने वाली की बेटी थी .
                                        कुछ दिनों बाद मुझे किशनगंज (बिहार का एक जिला) पढाई करने के लिए भेज दिया गया क्योंकि मेरे गाँव में बेहतर शिक्षा का आभाव था . जिस वजह से मै अब सिर्फ छुट्टीयों में ही घर  आ पाता  था . जुली अब भी मेरे घर  आती थी और वो अब भी पहले की तरह ही पतली और कुपोषित थी .उसके पास सिर्फ वही कपडे होते थे जो मेरे घर से त्योहारों या किसी घरेलु उत्सव में दिए जाते थे .
                            मै जब दसवी पास कर घर आया तो पता चला जुली की माँ अब इस दुनिया में नहीं रही .ये किसी ने पता करने की कोशिश तक नही कि की आखिर जुली की माँ को हुआ क्या था?? चार बहनों में जुली सबसे बड़ी थी .अब तो जुली के घर  मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा क्योंकि उसके पिताजी  हमेशा शराब के नशे में धुत रहते थे  .पैसे कमाने की सारी जिम्मेदारी उस लड़की के कंधे पर आ गयी .उस समय उसकी उम्र करीब 13 साल रही होगी .अब जुली हमारे घर में अपनी माँ की जगह काम करने आने लगी .
              दसवी के बाद मैं  +२ करने के लिए बोकारो स्टील सिटी चला गया . करीब छह महीने बाद घर आया तो पता चला की उसके पिता उसकी शादी करवा रहे हैं. मुझे बहुत बुरा लगा की इतने कम उम्र में उसकी शादी कैसे हो सकती है ??बाद में पता चला की उसके पिता उसकी शादी नही उसका सौदा कर रहे थे .जुली के पिता ने एक अधेड़ के हाथो जुली को बेच दिया था और उसके पिता ने जुली की कीमत सिर्फ छह हजार रूपये लगायी थी.  मैंने अपने पिताजी से जब इस बात की चर्चा की तो उन्होंने ने कहा मै बिशना (जुली के पिता) को समझा-समझा के थक चूका हूँ , पर वो मेरी बात नही मान रहा है .उधर मेरी छुट्टी भी  ख़त्म हो गयी और मै बोकारो चला गया  .
                                    कुछ दिन बोकारो में रहने के बाद  मेरे ग्यारहवी  की परीक्षा समाप्त हो चुकी थी और मै १ महीने के लिये घर आ गया था . मैंने घर में देखा की जूली अब मेरे घर काम करने नही आती है .माँ से पूछने पर पता चला की वह अपने ससुराल में है और वह बीच में एक बार घर भी आई थी . मुझे ये जान के अच्छा  लगा की चलो जुली को कम से कम उसके पति ने कहीं और बेचा तो नहीं . हमारे गाँव में ऐसा पहले भी  हो चूका है की लोग गरीबी से तंग आकर अपनी बेटी को शादी के नाम पर बेच देते हैं . उनमे से कई तो फिर दुबारा कभी वापस नही आ पाती हैं  . इसलिए इस हिसाब से तो जुली काफी भाग्यशाली थी की वह वापस अपने गावं आ पायी .
                                             कुछ दिनों बाद मेरा चयन बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में हो गया और मै बनारस चला गया,मै लगभग जुली को भूल गया था पर जब कभी उसकी याद आती थी तो बस वह मुझे मेरी साईकिल ठेलती हुई याद आती थी .स्नातक प्रथम वर्ष की परीक्षा के बाद जब मै अपने गावं आया तो जुली गावं आई हुई थी और उसके गोद में एक पेट निकला हुआ और बड़ी आँख वाला बच्चा था .साफ़ तौर पर पता चल रहा था की माँ और बच्चे दोनों कुपोषण के शिकार थे .उस समय भी जुली पेट से थी , यानि 16वा साल आते  आते जुली एक बच्चे की माँ बन चुकी थी और दुसरे  बच्चे की माँ बनने वाली  थी .
                                           मेरी  छुट्टी ख़त्म हो गयी थी और  मै फिर बनारस चला गया था . कुछ दिनों बाद मेरी  माँ का फ़ोन आया की जुली अब इस दुनिया में नही रही.यह सुनते हीं मेरी आँखों के सामने अंधेरा छा गया और मेरी आँखों से आंसू छलक आये  .माँ से पूछने  पर  पता चला की दूसरा बच्चा होने के दौरान जुली की मौत हो गयी .बचपन में जुली के साथ बिताये पल याद आने लगे .मुझे उसके पिता पर बहुत गुस्सा आया. .
                                      अगर देखा जाये तो जुली की यह मौत स्वाभाविक थी क्योंकि एक तो जुली कुपोषित थी दूसरी उसकी कम उम्र में शादी और बच्चे ने उसके शरीर को जर्जर बना दिया था जिस कारण वह दुसरे बच्चे का बोझ नही सह सकी  और इस दुनिया से चल बसीं . यह कहानी सिर्फ जुली की नही है ,आज भी हमारे देश में ऐसी कई जुलियाँ है जो इसी तरह असमय मौत का शिकार होती है . यह साफ़ तौर पर  हमारी शाइनिंग इंडिया की पोल खोलती है.  पता नही चल पाता की सरकार किस विकास का दावा करती है ,जबकि आज भी हमारे देश में मातृ मिर्त्यु दर सर्वाधिक बनी हुई है.  
     अब हमारे यहाँ जुली की दूसरी बहन टूली काम करती है पर खुशी  की बात  ये है की टूली स्कूल भी जाती है और वह कुपोषित भी नही दिखती है .मैंने भी प्रण लिया है की अब जबकि मै आई.आई .एम .सी. में हूँ तो  जो जुली के साथ जो  हुआ वो मै टूली के साथ कतई नही होने दूंगा. ...........................