बुधवार, 28 नवंबर 2012

शैक्षिक स्तर पर बदहाल भारत ........


भारत युवाओं का देश है और आने वाले समय में भारत युवा शक्ति के आधार पर विश्व शक्ति बनने के सपने भी देख रहा है . परन्तु क्या सिर्फ हम युवाओं की श्रमशक्ति के आधार पर ये सपना देख सकते हैं ???द्वितीय विश्व युद्ध में  जिस तरह  अमेरिका ने अपने परमाणु बम का प्रयोग जापान में किया था , उस समय ऐसा लगा था की जापान फिर शायद दुबारा विश्व की बड़ी  सैन्य शक्ति कभी नही बन पायेगा. ये बात सच भी हुई परन्तु जापान ने दूसरे तरीके से विश्व में अपना परचम  फिर से लहराया  .जापान ने अपने युवाओ को जागरूक और शिक्षित किया. पढाई से इतर वैकल्पिक रोजगार की शिक्षा दी और जापान विश्व के शीर्ष आर्थिक रूप से मजबूत देश में शामिल हुआ . भौगोलिक दृष्टि से अगर देखा जाये तो जापान भूकंप प्रभावित बहुत ही छोटा देश है फिर भी वहां के लोग तमाम मुश्किलों के बावजूद युवा शक्ति का सकारात्मक दिशा में उपयोग कर देश को खुशहाली के रस्ते पर ले गये.
                    

                    भारत के सन्दर्भ में देखे तो यहाँ प्रथिमिकी स्तर से ही शिक्षा का बहुत बुरा हाल है(कुछ निजी विद्यालयों को छोङ कर). आजादी के 65 सालो के बाद भी शिक्षा की स्तिथि में कोई ख़ास सुधार नहीं हुआ है. हम लगातार अपने पडोसी मुल्क चीन से इस मामले मे पिछङते चले गये .जहाँ 70 के दशक तक चीन हमसे शिक्षा के लगभग हर विभाग में पिछङा हुआ था ,वहीँ आज स्तिथि ठीक उसके उलट है .खासकर शोध कार्यों में भारत की स्तिथि और भी खराब है .इसी का कारण है की जिनके पास पैसा होता है या जो रिसर्च करना चाहते हैं वे विदेश जाना पसंद करते हैं .अभी हाल के ही दिनों में एक सर्वे में ये पता चला की विश्व के श्रेष्ठ 200 विश्वविद्यालय में भारत के एक भी विश्वविद्यालय नहीं है .इससे ज्यादा और शर्म की बात और क्या हो सकती  है ??? संयुक्त रास्त्र संघ में हम वीटो का अधिकार प्राप्त कर उन पांच चुनिंदा देशों की जमात में खड़े होने के लिए लालायित हैं ,लेकिन  विश्व शक्ति बनने के लिए जो बुनियादी अनिवार्यता है उनकी तरफ हमारा कोई ध्यान नहीं है
                                      हमारे देश के बड़े बड़े सम्मानित नेता विदेशो में पढ़कर तो अपनी शिक्षा की भूख मिटाने का प्रयास तो करते हैं पर जो सच में मेधावी है और जिन्हें वास्तव  में विश्व स्तरीय शिक्षा की जरूरत है , उनकी और सरकार का कोई ध्यान नही रहता है . उसके बाद सरकार प्रतिभा पलायन की बात भी करती है .ज्यादातर प्रतिभा को तो जन्म लेने से पहले हीं मार डाला जाता है और जो बमुश्किल बच जाता है वो फिर कभी विदेशों से वापस भारत आना नही चाहते हैं  .  नेता आखिर चिंता भी क्यों करे ?? वे तो अपने सगे –सम्बन्धियों को अच्छी शिक्षा दिला देते हैं तो फिर उन्हें देश के अन्य नागरिकों की चिंता करने की क्या जरूरत  है??
                                         
                         शिक्षा में प्रथिमिकी स्तर पर अगर हाल के दिनों में बिहार की बात करे तो पहले की तुलना में स्तिथि में कुछ सुधार जरुर हुआ है ,परन्तु ये नाकाफी है .सरकार वास्तव में शिक्षा की   स्तिथि सुधारने के बजाय अपनी स्तिथि सुधारना चाहती है .महज साईकिल,मिड डे मील और कुछ पोशाकों  का प्रलोभन देकर स्कूलों में भीड़ तो इकट्ठा की जा सकती है और वोट बैंक भी  बढ़ाया जा सकता है परन्तु अगर शिक्षक हीं योग्य न हो तो हम कैसी शिक्षा की कल्पना कर सकते हैं??? नितीश कुमार ने सत्ता में आते हीं अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए जल्दबाजी में सिर्फ प्रतिशत के आधार पर नियोजित शिक्षकों की बहाली  कर दी . जिस लालू यादव की बुराई करते नितीश कुमार नही थकते ,उन्हीं के समय चोरी करके पास किये हुए छात्रों को उन्होंने पढ़ाने का दायित्व सौप दिया और जो सही में योग्य शिक्षक थे वे कम प्रतिशत की वजह से चयनित नही हो सके . ऐसी में अगर प्राथमिक स्तर से शिक्षा की स्तिथि सही नही होगी तो हम उच्चस्तरीय शोध की बात कहाँ से सोच सकते हैं ???    
           प्रभावहीन बुनियादी शिक्षा के कारण हीं देश में पढ़े –लिखे बेरोजगारों की फ़ौज खङी हो रही है . य़ुवाओ को अच्छी शिक्षा नही मिल पाती है  जिस कारण उन्हें अच्छी नौकरी भी  नहीं मिल पाती है  . ऐसी स्तिथि में युवाओं के बिगड़ने के और गलत रास्ते में जाने के पूरे आसार होते हैं. कुछ युवा इसी कारण नशे की गिरफ्त में आते हैं और अपनी जिन्दगी बर्बाद कर लेते हैं.भारत में सबसे बड़ी समस्या ये है की यहाँ की जनसंख्या के हिसाब से अच्छे और विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय की संख्या नगण्य है . अभी हाल में हीं इंडिया टुडे में एक सर्वे में बताया गया था की हर साल जो लाखो  की संख्यां में इंजीनियरिंग पास आउट हो रहे हैं उनमे से 80 प्रतिशत ऐसी बच्चे हैं जो काम करने लायक ही  नहीं हैं .कुछ कॉलेजों की हालत सही है वरना बाकि कॉलेज मोटी फीस वसूल के सिर्फ डिग्री भर देने का काम करते  हैं .
                                                  भारत में अभी जरूरत है ऐसी शिक्षा पद्धति  की जो युवाओ को बचपन से हीं रोजगार की शिक्षा दे और जो रिसर्च करना चाहते हैं उन्हें भरपूर वित्तीय सहायता भी प्रदान करे.  मसलन कोई अगर खेल में जाना चाहता है तो उसे बचपन से हीं खेल की सामग्री उपलब्ध करायी जाये और माता ,पिता शिक्षको द्वारा उचित मार्गदर्शन भी दिया जाये .  अगर सच में भारत को विश्व शक्ति बनाना है तो बुनियादी स्तर से लेकर रिसर्च विभाग तक पुरे सिस्टम को दुरुस्त करना होगा . अगर शिक्षा के स्तर को जल्दी सुधारा न गया तो  विश्व स्तर पर हम  लगातार पिछङते जायेंगे और  पढ़े –लिखे युवाओं की ऐसी फ़ौज तैयार कर लेंगे जिसकी कार्य क्षमता नगण्य होगी..............
   
धन्यवाद
राहुल आनंद                        

2 टिप्‍पणियां:

  1. बिलकुल सही कहा।हमारे देश मे पहले से साक्षर लोगो की संख्या मे ईजाफ़ा तो जरूर हुआ है।युवा के लिए आज सबसे बड़ी समस्या नौकरी की है । बेरोजगारी के कारण सही दिशा मे काम नहीं कर पा रहा है युवावर्ग।
    जिससे आंतरिक रूप से देश खोखला होता जा रहा है।

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