ये कैसी असमानता ???
“आजादी के 65 सालो में हमने तेजी से तरक्की तो की लेकिन उतनी ही तेजी से देश की एक बड़ी आबादी दूर छूटती चली गयी .चमकते भारत की सच्चाई ये है की देश के 25 प्रतिशत आमदनी पर बस कुछ 100 परिवारों का कब्ज़ा है , जबकि हमारी 75 प्रतिशत आबादी रोजाना 20 रूपये से भी कम पर गुजर – बसर करने को मजबूर है , इस अंतर से जन्मा अविश्वास और आक्रोश बढता जा रहा है और शायद वक़्त हमारे हाथ से फिसलता जा रहा है” – चक्रव्यूह फिल्म के अंत में ये वाइस ओवर मुझे इस फिल्म की सबसे अच्छी बात लगी .
ये कैसी असमानता है जो ख़त्म होने का नाम ही नही ले रही है .आखिर ये दिनों दिन बढती क्यों जा रही है ???गरीबो और अमीरों के बीच बढती खाई का ऐसा उदाहरण विरले हीं किसी और देश में देखने को मिलता है .आखिर ये कैसा विकास है जो कुछ चुनिंदा लोगो और वर्गों तक ही सिमित है .
उदारीकरण आने के बाद भले हीं देश की सरकारी खज़ाने की खस्ताहाल हालत में सुधार आयी हो ,परन्तु इससे गरीबो को कोई खास फायदा नही हुआ . उस समय से हीं सरकारी खज़ाने में गिद्ध जैसी नजरे टिकाये लोगो ने जम कर लुट मचायी .लूट आज भी मच रही है ,जम कर मच रही है . बस हर बार लूट का नाम अलग –अलग होता है .कभी बोफोर्स के नाम पर,कभी कॉमनवेल्थ गेम के नाम पर, कभी २ जी स्पेक्ट्रम के नाम पर ,कभी कोयला घोटाले के नाम पर और ना जाने लूट के कितने प्रकार हैं . ये तो ऐसी लूट है जो देश की जनता के सामने है, पर जो छुपा के लूट का खेल चल रहा है वो तो किसी को भी मालूम नही चल पाता है.
ऐसी में देश का एक बड़ा वर्ग जिनकी सत्ता तक पहुँच नही थी,वह आर्थिक रूप से पीछे होते चली गयी और आज तक गरीबी और उपेक्षा का दंश झेल रही है .खुद राजीव गाँधी ने कहा था की “भारत में भ्रष्टाचार की जड़े इतनी गहरी है की विकास के लिए अगर १ रुपया भेजा जाता है तो जरूरतमंद के पास मुश्किल से १० पैसा पहुँच पाता है”. जो लोग सीधे सरकारी खजाने की लूट में शामिल नही हो सके उन्होंने अपने स्तर पर लूट मचायी .
भारत में ऐसे बहुत ही कम कार्यालय हैं जहाँ बिना घूस के ही काम हो जाते हैं , ये एक ऐसी गलत पद्धति विकसित हुई है जो हमेशा गरीबो को मुँह चिढ़ाती है . जिनके पास पैसा होता है वह आराम से अपना काम करवा के निकल जाते हैं और जो गरीब हैं वो कई दिनों तक अपनी एड़ियां घिसने के बाद भी अपना काम नही करवा पाते हैं ..
बहुत सारे सज्जन कहते हैं अब पहले से स्तिथि काफी सुधरी हैं . हाँ ,ये सच है स्तिथि पहले से सुधरी है ,पर किसके लिए, जो पहले से अमीर थे वे और भी अमीर होते चले गये और जो गरीब थे वे और भी गरीब होते चले गए . अगर ऐसा नही होता तो नक्सलवादी हमारे देश में अपनी जड़े गहरी नहीं कर पाते . आज नक्सलवाद सरकार के लिए सिरदर्द बनी हुई है .उन इलाको में सरकार के प्रति काफी गुस्सा है . आखिर गुस्सा हो भी क्यों न ??? इन इलाको में सरकार लोगो को मुलभूत आवश्यकता पहुँचाने में तो नाकाम रही हीं है , और जब जब उनकी जमीन छीन कर कोई फैक्ट्री खोलना की बरी आती है तो सरकार उद्योगपतियों के पक्ष में खरी दिखती है.
बचपन मे मैंने अपने शिक्षक से स्वाभाविक सवाल पूछा की सर कोई गरीब और कोई अमीर क्यों होता है ??? क्यों हमारे यहाँ काम करने वाला अमलवा मेरे साथ मेरे बिछावन पर साथ बैठकर टी. वी. नहीं देख सकता ??? सर ने बोला ये जो पैसे वाले लोग होते है न ये गरीबों का खून चूस कर ही अमीर बनते हैं . जितने भी बड़े –बड़े मकान होते हैं न उसके आस पास गरीबो की झोपडिया होतीं है .ये लोग इन्ही को बेवकूफ बना कर अमीर बनते हैं .बेशक उनकी बातें पूर्वाग्रह से ग्रसित थी ,पर अब जब कभी मै वसंत कुञ्ज या साकेत के डी.ल .एफ माँल जाता हूँ और उसके सामने की झोपड़ियाँ देखता हूँ तो सर की कही बात सच लगने लगती है .
आर्थिक विकास का ये कैसा मॉडल है जो देश में चका-चक सड़के ,बड़े-बड़े मॉलो का निर्माण तो करवा रही है लेकिन वहीँ देश में ऐसी बहुत सारे लोग ऐसें है जो रात में भूखे पेट और बिना छत के सोने को मजबूर हैं .आर्थिक विकास का ये कैसा मॉडल है जो सिर्फ बड़े –बड़े शहरो तक ही सारा विकास पहुंचा रही है और देश में ऐसी बहुत सारे गाँव हैं जहाँ ना सड़के हैं ,न ही बिजली है .
हमारे देश के ऊपर 345.8 अरब डॉलर का कुल विदेशी ऋण है जो की जी.डी.पी.का २० प्रतिशत है . इसके बावजूद हाल के दिनों में यु .पी.ए . सरकार में लगातार हो रहे घोटाले ने देश की सरकारी खजाने पर जबरदस्त असर डाला है .यह देश की समेकित विकास के लिए बहुत बड़ा खतरा है .नरेगा जैसी योजनाओ ने कुछ उम्मीद की किरण जरुर जगायी थी ,परन्तु यह योजना भी भ्रष्टाचार की भेट चढ़ गयी .
देश के सामने चुनौती है भारत को वैश्विक परिदृश्य में स्थापित करने की और साथ में देश के सभी नागरिको के बीच आर्थिक समानता स्थापित करने की . यह असंभव नहीं है, परन्तु सरकार को देश के अंतिम हिस्से तक ,जहाँ के लोग अभी तक उपेक्षित हैं वहां शिक्षा,रोड और काम पहुँचाने का जोरदार काम करना होगा , नही तो देश में गृहयुद्ध जैसी स्तिथि पैदा हो सकती है और भारत की धरती को अपने ही संतानों के खून से लाल होना पर सकता है ,जो भारत जैसे लोकतंत्र देश के लिए कतई अच्छी बात नही होगी ......
धन्यवाद
राहुल आनंद
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