रविवार, 25 नवंबर 2012

बोझ .......


बचपन मे जब भी कोई शादी या उत्सव होता तो मुझे ये सोचकर काफी गुस्सा आता था की कोई भी निर्णय मुझसे पछकर क्यों नहीं लिए जा रहे हैं ??? मुझे लगता था की शादी-ब्याह के मौके पर बच्चों को मिठाई का प्रलोभन देकर सिर्फ काम करवाया जाता है और अगर बड़ों को ज्यादा तरस आ गया तो बच्चों को डांस करने का मौका भी मिल जाता था . 10-12 साल की उम्र से हीं इस बात को लेकर मै अपने आप को उपेक्षित महसूस करने लगा था .उपेक्षित होने के बोझ तले मै दबता जा रहा था .मेरी उपेक्षा तब कुंठा बन गयी होती अगर सही समय पर मेरे घर के सबसे बड़े भैया ने इसे ना पहचाना होता .
                      उन्होंने कहा अरे बेवकूफ तू अभी क्यों उदास होता है .अभी तो तेरे सामने पूरी जिन्दगी पड़ी हुई है .खुल के जियो और जिन्दगी के मजे लो . मैंने उन्हें बड़े हीं रोनी सूरत बना के कहा साला ये भी कोई जीना है ,जहाँ मेरी कोई सुनता हीं नहीं. मैंने भैया से कहा मुझे भी बड़ा होना है ,मुझे  भी लोगों पर आर्डर पास करना है  .अगर ऐसा कोई उपाय है तो बताओ भैया . ऐसी घुटन भरी जिन्दगी से मुझे मुक्ति दिलाओ  भैया . मेरे भैया ने मुझपे तरस कहा कर  कहा ,तू घबरा मत बेटा ,अभी तुझे बहुत जल्दी पड़ी है न बड़े होने की . तू भी बड़ा होगा और बोझ तले दब जायेगा .तब मै तेरे से बात करूंगा
                             मुझे तभी समझ नही आया की ये बोझ क्या होता है??? मुझे लगा की शायद मेरे यहाँ जब धान का समय आता है तो खेत में काम करने वाले सर पर धान का बोझा ढो कर लाते थे  , भैया शायद उसी बोझ की बात कर रहे होंगे . पर मुझे क्या पता था की ये बोझ ऐसी चीज है जो उम्र दर उम्र बढती हीं चली जाएगी .इस बोझ का रिश्ता फेविकोल के जोड़ से भी ज्यादा मजबूत हो जायेगा. अब तो बोझ के साथ जीने की आदत सी हो गयी है .बड़े होने का सारा शौक धुँआ –धुँआ हो गया . बचपन की जितनी भी हेकरी थी सब रफ्फुचक्कर हो गयी.
               हम युवी बड़ें हीं कल्पनाशील होते हैं ,कल्पनाओं की दुनिया में हम अक्सर खो जाते है; बड़े बड़े सपने देखने लगते हैं और लोगों को दिखाते भी हैं , यहीं से शुरुवात होती है बोझ की  . ये बोझ किसी भी प्रकार के हो सकते हैं .पर जो शुरुवाती बोझ  होते  है वो हमारे घर से हीं शुरू होते  है .माँ-बाप हमे पढ़ाते हैं ,हमारे साथ ढेर सारी उम्मीदे जोड़ लेते हैं . बस हमारा बोझ तले दबना यहीं से शुरू हो जाता है और हम फिर कभी  इस बोझ से बाहर नहीं निकल पातें . जब कभी छोटे बच्चो के स्कुल बेग के बोझ  को कम करने के लिए आवाज उठती है तो ,मुझे बहुत हसीं आती है की लोग इस बोझ को तो देख कर तो बच्चो पर तरस खा रहे हैं ,पर जो भयानक अदृश्य बोझ के तले हम दबे हैं उसका क्या???
                                   घर से जब भी एटीएम में पैसे आते हैं यह बोझ काफी शर्मिंदगी के साथ और भी बढ़ जाता है . जब कभी माँ हमारे पड़ोसी के किसी बच्चे के इंजिनियर या डॉक्टर बन जाने पर हमारी तुलनात्मक अध्ययन शुरू करती है तो यह बोझ हमे और भी मुहं फाड़कर चिढाती  है .आजकल एक नया बोझ मार्केट में आया है .अगर आपके किसी परिचित या दोस्त के पास कोई गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड है और  आप अगर इस कमी से जूझ रहे हैं तो ये बोझ तो दुगुना बढ़  जाता है .युवाओ के लिए इससे बड़ा बोझ और क्या हो सकता है ??
                              आजकल हमारे हिंदी पत्रकारिता के छात्र बोझ तले कितने दबे हैं ये तो हमे पता नही ,पर भैया हम तो बहुते बोझ तले दबे हैं .हमारे ऊपर बोझ है एसाइनमेंट बनाने का , हमारे ऊपर बोझ है हमारे गाँव के पड़ोसी का,हमारे ऊपर बोझ है परीक्षा में अच्छा नम्बर लाने का ,हमारे ऊपर बोझ है इंग्लिश जर्नलिज्म और आर.टी.वी . के बच्चो जितना फर्राटेदार इंग्लिश बोलने का ,हमारे ऊपर बोझ है क्लास में ज्यादा बोल पाने का (उ क्या है न भैया हमको कोई कहे हैं की आप खाली  ब्लोगे में बोलते हैं,क्लास में नही ), और सबसे बड़ी बात हमारे ऊपर बोझ है प्लेसमेंट पाने का .
                              तो देखा दोस्तों एक युवा बोझ तले कितना दबा हुआ होता है ,पर फिर भी युवा हीं इस बोझ की गठरी को उतार के फेक भी देता है और खुश रहता है  . हम में बहुत उर्जा है बस जरूरत है उस बोझ को प्रेरणा बना कर जीवन में आगे बढ़ने की . जितने भी लोगों ने कुछ अलग और अच्छा कर दिखाया हैं उन सभी के जिन्दगी में उतने हीं ज्यादा बोझ थे . दुनिया उसी को याद करती है जो बोझ को बोझ नहीं मानते ...
धन्यवाद
राहुल आनं


2 टिप्‍पणियां:

  1. राहुल जी, आपकी टिप्पणियाँ गजब की हैँ। गर्लफ्रेण्ड न होने और अंग्रेजी न बोल पाने को बोझ मत मानिये.

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  2. आपके सुझाव पर जरुर अमल करूंगा अमित जी. वैसे आपके सुझाव और उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया ..

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