मंगलवार, 13 नवंबर 2012

                      जुली..एक दर्द भरी दास्तां    

भैया, मै आपके साईकिल को ठेलूं – एक पतली सी लड़की ने मुझसे बड़ी हीं  उम्मीदों के साथ पूछा . मैंने उसे अपने सिर को हिला कर सहमती प्रदान की .उसके बाद वह मेरे साईकिल  को करीब आधे घंटे तक लगातार ठेलती रही . मैं साईकिल पर बैठकर भी उतना खुश नही था जितना वो मेरे साईकिल  को ठेल कर खुश थी . यह बात उस समय की जब मै 11 साल का था और उस लड़की की उम्र करीब करीब मेरे से 2 -3 साल छोटी तो जरुर  रही  होगी .उसका नाम जुली था और वो मेरे घर घरेलू काम करने वाली की बेटी थी .
                                        कुछ दिनों बाद मुझे किशनगंज (बिहार का एक जिला) पढाई करने के लिए भेज दिया गया क्योंकि मेरे गाँव में बेहतर शिक्षा का आभाव था . जिस वजह से मै अब सिर्फ छुट्टीयों में ही घर  आ पाता  था . जुली अब भी मेरे घर  आती थी और वो अब भी पहले की तरह ही पतली और कुपोषित थी .उसके पास सिर्फ वही कपडे होते थे जो मेरे घर से त्योहारों या किसी घरेलु उत्सव में दिए जाते थे .
                            मै जब दसवी पास कर घर आया तो पता चला जुली की माँ अब इस दुनिया में नहीं रही .ये किसी ने पता करने की कोशिश तक नही कि की आखिर जुली की माँ को हुआ क्या था?? चार बहनों में जुली सबसे बड़ी थी .अब तो जुली के घर  मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा क्योंकि उसके पिताजी  हमेशा शराब के नशे में धुत रहते थे  .पैसे कमाने की सारी जिम्मेदारी उस लड़की के कंधे पर आ गयी .उस समय उसकी उम्र करीब 13 साल रही होगी .अब जुली हमारे घर में अपनी माँ की जगह काम करने आने लगी .
              दसवी के बाद मैं  +२ करने के लिए बोकारो स्टील सिटी चला गया . करीब छह महीने बाद घर आया तो पता चला की उसके पिता उसकी शादी करवा रहे हैं. मुझे बहुत बुरा लगा की इतने कम उम्र में उसकी शादी कैसे हो सकती है ??बाद में पता चला की उसके पिता उसकी शादी नही उसका सौदा कर रहे थे .जुली के पिता ने एक अधेड़ के हाथो जुली को बेच दिया था और उसके पिता ने जुली की कीमत सिर्फ छह हजार रूपये लगायी थी.  मैंने अपने पिताजी से जब इस बात की चर्चा की तो उन्होंने ने कहा मै बिशना (जुली के पिता) को समझा-समझा के थक चूका हूँ , पर वो मेरी बात नही मान रहा है .उधर मेरी छुट्टी भी  ख़त्म हो गयी और मै बोकारो चला गया  .
                                    कुछ दिन बोकारो में रहने के बाद  मेरे ग्यारहवी  की परीक्षा समाप्त हो चुकी थी और मै १ महीने के लिये घर आ गया था . मैंने घर में देखा की जूली अब मेरे घर काम करने नही आती है .माँ से पूछने पर पता चला की वह अपने ससुराल में है और वह बीच में एक बार घर भी आई थी . मुझे ये जान के अच्छा  लगा की चलो जुली को कम से कम उसके पति ने कहीं और बेचा तो नहीं . हमारे गाँव में ऐसा पहले भी  हो चूका है की लोग गरीबी से तंग आकर अपनी बेटी को शादी के नाम पर बेच देते हैं . उनमे से कई तो फिर दुबारा कभी वापस नही आ पाती हैं  . इसलिए इस हिसाब से तो जुली काफी भाग्यशाली थी की वह वापस अपने गावं आ पायी .
                                             कुछ दिनों बाद मेरा चयन बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में हो गया और मै बनारस चला गया,मै लगभग जुली को भूल गया था पर जब कभी उसकी याद आती थी तो बस वह मुझे मेरी साईकिल ठेलती हुई याद आती थी .स्नातक प्रथम वर्ष की परीक्षा के बाद जब मै अपने गावं आया तो जुली गावं आई हुई थी और उसके गोद में एक पेट निकला हुआ और बड़ी आँख वाला बच्चा था .साफ़ तौर पर पता चल रहा था की माँ और बच्चे दोनों कुपोषण के शिकार थे .उस समय भी जुली पेट से थी , यानि 16वा साल आते  आते जुली एक बच्चे की माँ बन चुकी थी और दुसरे  बच्चे की माँ बनने वाली  थी .
                                           मेरी  छुट्टी ख़त्म हो गयी थी और  मै फिर बनारस चला गया था . कुछ दिनों बाद मेरी  माँ का फ़ोन आया की जुली अब इस दुनिया में नही रही.यह सुनते हीं मेरी आँखों के सामने अंधेरा छा गया और मेरी आँखों से आंसू छलक आये  .माँ से पूछने  पर  पता चला की दूसरा बच्चा होने के दौरान जुली की मौत हो गयी .बचपन में जुली के साथ बिताये पल याद आने लगे .मुझे उसके पिता पर बहुत गुस्सा आया. .
                                      अगर देखा जाये तो जुली की यह मौत स्वाभाविक थी क्योंकि एक तो जुली कुपोषित थी दूसरी उसकी कम उम्र में शादी और बच्चे ने उसके शरीर को जर्जर बना दिया था जिस कारण वह दुसरे बच्चे का बोझ नही सह सकी  और इस दुनिया से चल बसीं . यह कहानी सिर्फ जुली की नही है ,आज भी हमारे देश में ऐसी कई जुलियाँ है जो इसी तरह असमय मौत का शिकार होती है . यह साफ़ तौर पर  हमारी शाइनिंग इंडिया की पोल खोलती है.  पता नही चल पाता की सरकार किस विकास का दावा करती है ,जबकि आज भी हमारे देश में मातृ मिर्त्यु दर सर्वाधिक बनी हुई है.  
     अब हमारे यहाँ जुली की दूसरी बहन टूली काम करती है पर खुशी  की बात  ये है की टूली स्कूल भी जाती है और वह कुपोषित भी नही दिखती है .मैंने भी प्रण लिया है की अब जबकि मै आई.आई .एम .सी. में हूँ तो  जो जुली के साथ जो  हुआ वो मै टूली के साथ कतई नही होने दूंगा. ...........................

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