रविवार, 13 जनवरी 2013

जाति का जहर ......

                     जाति का जहर
हमारा देश विविधताओं एवं विभिन्नताओं से भरा हुआ देश है ,इस बात पर प्रायः हम गौरवान्वित भी होते रहते हैं ,परन्तु कभी-कभी यही विभिन्नता और विविधता हमारे लिये  घातक बन जाती है . भारत ने कई बार क्षेत्रीय , धार्मिक और जातीय आधार पर मुसीबतें झेलीं हैं , जिसके काफी भयानक परिणाम भी भुगतने पड़े हैं .
                                      परन्तु जाति के आधार पर भेद-भाव काफी खतरनाक है ,यह उस  धीमें  जहर की भांति है जो समाज को धीरे-धीरे खोखला कर देती है .सभी धर्मों में, खासकर हिन्दुओं  में जातिगत भेदभाव काफी ज्यादा है .सवाल यह उठता है की क्या आजादी के ६५ सालों के बाद जब भारत ने काफी तरक्की कर ली है (भलें हीं यह तरक्की एकतरफा है) ,तो क्या जाति  सम्बन्धी मुद्दे उठाने चाहिए .मुझे लगता है आज भी ये मुद्दे काफी प्रासंगिक हैं . चाहे हमने कितनी भी तरक्की क्यों न कर लिया हो ,आज भी देश के कई हिस्सों में जातिगत भेदभाव और छुआछूत विद्यमान है .
                              समाज के धनाढ्य वर्ग ,अपने आपको पवित्र और शूरवीर कहने वाले वर्ग ने अपने फायदे के लिए समाजिक व्यवस्था के नाम पर जाति  का स्वरूप गढ़ा था, जो निरंतर जारी है .दलितों में भी दलित महिलाओं की स्तिथी  तो और भी भयानक है , उन्हें न सिर्फ पुरे समाज से उपेक्षा का दंश झेलना पड़ता है जबकि इस पुरुषवादी सत्ता से भी संघर्ष करना पड़ता है . पूरे समाज में किसी ख़ास जाति के प्रभुत्व की राजनीति बहुत पुरानी है . मौजूदा हालात में देखें तो इस सम्बन्ध में काफी जागरूकता आने के बावजूद भी देश में अधिकांश बड़े पदों पर ऊँची जाति  के लोगों का बोलबाला है .मीडिया भी इससे अछुता नहीं है,यहाँ भी प्रायः ऊँची जातियों के लोगो का हीं  बोल-बाला है ,कई बार ख़बरों में भी इसका सीधा असर देखने को मिल जाता है . आजादी के समय से हीं पिछडी जाति के लोगों को आरक्षण की सुविधाएँ दि गयी हैं , फिर भी स्तिथी बहुत ज्यादा नहीं सुधरी है
                                 हजारों वर्षों से उन लोगों के साथ जो अन्याय और भेद-भाव हुआ है ,इनसे उनकी मानसिक दशा बुरी तरह प्रभावित हुई है , जो की कुछेक दशक पूर्व आरक्षण भर दे देने से नहीं मिट सकती है.  राजनीतिक पार्टियों ने इस मुद्दे पर जम कर अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेकीं हैं . कई राजनीतिक पार्टियां तो सिर्फ जाति के नाम पर चुनाव लडती है और जीतती है ..फिर चाहे तो वह मायावती हो ,मुलायम सिंह हो या लालू यादव हो . सभी ने अपने –अपने मतलब के लिए किसी ख़ास जाति विशेष का भरपूर उपयोग किया है .मायावती को तो ये लगता है की पार्कों में मूर्तियाँ लगा देने भर से वर्षों से चले आ रहें छुआछूत का अंत हो जायेगा.बिहार में  नितीश कुमार ने इस सम्बन्ध में तो और भी बड़ा दांव खेल दिया .उन्होंने दलितों में भी वर्ग विभाजन कर एक को दलित और दूसरे को महादलित घोषित कर दिया .
                                    ऐसा नहीं है की इस दिशा में किसी ने आवाज नही उठायी  है , जातिगत व्यवस्था हमारे समाज में इस तरह रची-बसी हुई है की इसका समूल नाश करना संभव नही है ,फिर भी गांधीजी ने इस दिशा में अच्छी पहल की थी  . उन्होंने दलितों द्वारा किये गए  सभी कार्य को महान बताया और दलितों को हरिजन का नाम देकर कुछ सम्मान दिलाने की कोशिश भी की .जातिगत भेदभाव मिटाने के लिए उनहोंने कोई विशेष कार्य नही किया . इस दिशा में भीमराव आंबेडकर ने काफ़ी अच्छा काम किया है .उन्होंने हिन्दू धर्म में व्याप्त छुआछूत की बुरायी की और दलितों के आवाज उठाने के लिए लगातार संघर्ष किया ,वे दलितों को समाज में  सम्मान और सविधान के माध्यम से कुछ अधिकार दिला पाने में तो जरुर  सफल हुए ,लेकिन जाति व्यवस्था को वों भी ख़त्म न कर सकें   .
                                          आज भी बहुत जगहों से ऐसी खबर आ जाती हैं जिसमे दलितों के साथ अन्याय की बात सामने आती हैं . आमिर खान के प्रोग्राम सत्यमेव जयते में एक दलित लड़की से आमिर खान ने बात की थी ,जो अभी संस्कृत की अध्यापिका हैं. उन्होंने बताया की जब वह जे.एन.यू . में पढ़ती थीं, तो वहां भी उनके साथ भेद-भाव होता था . जिस बेंच में वो बैठती थी,उस बेंच में कोई नहीं बैठता था .यह बात सचमुच चौकाने वाली है ,क्योंकी जे.एन.यू . जैसे संस्थान जो इन सब समाजिक मुद्दे को लेकर काफी संवेदनशील है वहां पर भी ऐसी घटना घट सकती है तो देश के और हिस्सों में क्या कल्पना की जा सकती है?अभी कुछ दिन पहले केरल में एक ऐसी घटना सामने आयी, जिसमें दलित समाज में हीं एक उच्च दलित जाती के लोगों ने अपने से निम्न दलित जाति के प्रेमी जोड़े को मार डाला .
                                        दलित जाति में भी जो उच्च वर्ग के हैं ,वे अपने से निम्न दलित को निकृष्ट समझते हैं, यह काफी खतरनाक स्तिथी  है . ब्राह्मणवाद का यह स्वरूप जातिगत व्यवस्था का निकृष्ट उदाहरण है .ब्राह्मणवादी व्यवस्था से मेरा तात्पर्य किसी खास स्वर्ण जाति से नहीं है ,ब्राह्मणवादी व्यवस्था वह व्यवस्था है जिसमे कोई भी जाति या खास समूह अपने आप को सबसे अच्छा जाति या वर्ग समझते है . अगर कोई व्यक्ति खुद को भी  व्यक्तिगत तौर पर सर्वश्रेष्ठ समझता है तो भी वह ब्राह्मणवाद है . जरूरत सिर्फ जाति व्यवस्था में सुधार और समानता की नही है जरूरत है ब्राह्मणवादी सोच से भी मुक्ति पाने की  .......
                   दूसरी तरफ दलित और पिछडे वर्ग भी संगठित होकर सवर्णों  के खिलाफ़ खुल कर आवाज उठा रहें हैं . चूँकि स्वर्ण और ऊँची जाति के लोगों ने दलितों का शोषण किया है ,इस आधार पर उनका भी शोषण होना चाहिए ,यह सोच काफी खतरनाक है . आपसी वैमनस्य और प्रतिरोध किसी भी समस्या का समाधान नहीं है .इससे समाज में अराजकता की स्तिथी पैदा हो सकती है और इससे किसी का भी भला नही होगा . जरूरत है एक बेहतर समाज बनाने की ,जिसमे सभी समान हो ,किसी को भी उपेक्षित और अछूत न समझा जाये. यह असंभव नही है ,यह हो सकता है . आइये प्रयास करें मिलकर हम और आप ..
धन्यवाद
राहुल आनंद        

2 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. ji haan jrur,ladki chahe koi bhi ho,agar mujhe usse pyar ho gya to jrur jivan sathi bna skta hun.. dusri jati me vivah is jati ki avdharna ko kam karne me apni badi bhumika nibha sakta hai...mujhe khusi hogi agar mai kisi dalit ladki ko apna jivan saathi bna paunga ..

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