बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

नक्सलवाद- समस्या या समाधान

                                              नक्सलवाद -समस्या या समाधान


नक्सलवाद भारत में एक ऐसी  समस्या के रूप में  उभर  रहा है जिसका अगर तुरंत समाधान नही किया गया तो यह पुरे देश को दीमक  की तरह खा जायेगा  .पिछले कुछ वर्षों में नक्सलवाद  का तेजी से विकास हुआ है , जो भारत की आतंरिक सुरक्षा के लिये  बहुत बड़ा खतरा है .
                                                                        
                                                               यहाँ ये प्रश्न उठना लाजिमी है की आखिर इसकी उत्पत्ति क्यों और किस उद्देश्य के लिये  हुई ????? आखिर हमारे ही  देश के नागरिक में इतनी असंतुष्टि की भावना क्यों हो गयी की   वे शस्त्र  उठाने के लिये  मजबूर हो गए..... 





नक्सलवाद कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों के उस आन्दोलन का अनौपचारिक नाम है  जो भारतीय कम्युनिस्ट आन्दोलन के फलस्वरूप उत्पन्न हुआ  है . नक्सल शब्द की उत्पत्ति पश्चिम बंगाल के छोटे से गाँव नक्सलबारी से हुई है जहाँ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता चारू मजुमदार और कानू  सान्याल ने सत्ता के खिलाफ एक सशस्त्र आन्दोलन की शरुआत की .मजुमदार चीन के कम्युनिस्ट नेता माओत्से तुंग के बहुत बड़े प्रशंसको में से एक थे. उनका मानना था की भारतीय मजदूरो और किसानो की दुर्दशा के लिये  सरकारी नीतियाँ जिम्मेदार हैं जिसकी वजह से उच्च वर्गों का शासन  तंत्र और कृषि तंत्र पर वर्चस्व स्थापित हो गया है उनका मानना था की  इस वर्चस्व को सिर्फ सशस्त्र  क्रांति द्वारा ही समाप्त किया जा सकता है . 
                                                     
                                                  मजुमदार की मौत   के बाद यह आन्दोलन एक से अधिक शाखाओ में विभक्त हो अपने लक्ष्य और विचारधारा से विचलित हो गया .आज कई नक्सली संगठन वैधानिक रूप से स्वीकृत राजनितिक पार्टी बन गए हैं और संसदीय चुनाव में भाग लेते हैं . लेकिन बहुत सारे सगठन आज भी छद्म लड़ाई में लगे हैं . नक्सलवाद की सबसे ज्यादा मार आंध्राप्रदेश ,छतीसगढ़ ,ओडिशा ,झारखण्ड,और बिहार में झेलनी पड़  रही है 

                              नक्सलवाद की   उत्पत्ति का सबसे बड़ा कारण सरकार की गलत नीतियां हैं , आजादी के ६ दशक बीत जाने के बाद भी देश में ऐसे बहुत सारे हिस्से हैं जहाँ विकास तो दूर लोगो की मुलभुत आवश्यकता  भी पूरी नही हो पाई है .ये लोग वर्षो से शोषित और उपेक्षित हैं .देश में उदारीकरण के बाद अमीरों और गरीबो के बीच की खाई और बढती चली गई .जो  आमिर थे वे और भी आमिर हो गए वहीँ दूसरी और जो गरीब,आदिवासी और उपेक्षित लोग थे वे और भी गरीब होते चले गए . ऐसे में नक्सली इसे अपने लिये  समाधान के रूप में देख रहे हैं वहीँ ये सरकार के लिया निःसंदेह समस्या है 
                          
                                                                                      सरकार विकास के नाम पर आदिवासियों की जमीन    लगातार हड़प रही है ,जिस कारण आदिवासियों में सरकार के खिलाफ व्यापक रोष है, इसी रोष का कारण है की  नक्सली सस्त्र उठाने को मजबुर  हुए हैं परन्तु क्या हिंसा किसी समस्या का समाधान है , क्या नक्सलियों के शस्त्र उठाने से इस समस्या का समाधान हो जायेगा ??? 

                                                                             ये कभी संभव नही  है की भारत जैसी लोकतांत्रिक देश में कोई भी संघठन या समूह हथियारों के बल पर पुरे व्यवस्था को बदल दे .  ये भले हो सकता है की देश में कुछ देर के लिये  अराजकता का माहौल पैदा हो जाये , परन्तु हथियार कभी भी किसी भी समस्या का समाधान नही हो सकती .     
             देश की सुदूर इलाको में सरकार के खिलाफ इस तरह का अविश्वास पैदा हो गया है की नक्सल ग्रसित इलाको में लोग कोई भी विवाद से  निपटने के लिये  वहां के नक्सल नेता की मदद लेते हैं बजाय  देश की न्यायपालिका के .   यह सरकार की सामूहिक  विफलता है की देश में एफ .डी.आई .लाने  को तो ये लोग बैचैन हैं लेकिन नक्सल ग्रसित इलाको का विकास कैसे हो, वहां बिजली, सड़क ,और बाकि मुलभुत चीज़े कैसे पहुचे इनसे उन्हें कोई मतलब नही है .
                                         मुझे ये बात समझ नहीं आती की जो नेता ५ सालो तक इन इलाको में जाने से घबराते हैं वे चुनावो के वक़्त वहां कैसे पहुँच जाते हैं??? वही दूसरी ओर सरकार अगर विकास करने की कोसिस भी कर रही है तो नक्सली नेता स्कुलो ,सरकारी संस्थानों को  बम धमाको से उड़ा देते हैं ,पिछले साल नक्सलियों ने घेर कर ७३ जवानो को मार दिया ये घटना काफी दिल दहला देने वाली थी ओर उसके बाद सरकार ने भी ग्रीन हंट के नाम पे न जाने कितने आदिवासियों की जान ली .

                                                    उन्हें ये समझ में क्यों नही आता की ये सब करने से वे ओर भी पीछे हो जायेंगे ,इतिहास गवाह है की बन्दुक के बल पे जहाँ भी सत्ता स्थापित की गयी है वहां हमेशा अराजकता की स्थिति पैदा हो जाती  है ,भारत जैसे देश जो लोकतंत्र की प्रयोगशाला है वहां के लिये तो ये  ओर भी असहजता वाली स्तिथि होगी .      
                          पहले तो आदिवासी सरकार द्वारा उपेक्षित हुए ,उनकी जमीने छीन ली गयी ,प्रयाप्त सुविधाओ से उन्हें वंचित रखा गया ओर अब कुछ नक्सली नेता इन गरीबो के कंधो पर दो नाली रखकर गोली चलाते हैं .हर जगह अगर कोई बलि का बकरा बनता है तो वो है गरीब, उपेक्षित ओर कमजोर .  
                                                                
 जैसे जैसे नक्सलियों की ताक़त बढती गयी उनमे भी विलासी जीवन की कामना बढती गयी ओर वहां भी प्रयाप्त भ्रस्टाचार बढता जा रहा है .गरीब ये नही समझ पा  रहे है की नक्सली भी उनका अपने फायदे के लिये  उपयोग कर रहे हैं 

                        ऐसे समय में जहाँ देश के सामने बहुत सारी समस्याएं हैं वही नक्सलियों की समस्या सरकार के लिये  बड़ी समस्या बन कर उभरी है,    अब सरकार के  सामने ये चुनौती है की कैसे इस समस्याओ का  समाधान निकाला जाये , ये तो सत्य है की आदिवासियों और नक्सलग्रसित  इलाको में देश की व्यवस्था के खिलाफ काफी गुस्सा है .इस गुस्से को समाज के असमाजिक तत्व और भी बढ़ावा दे रहे हैं  वही दूसरी और इन दिनों नक्सलियों को विदेशी  ताकतों से मदद की खबर आ रही है , जो  देश की आंतरिक समस्या के लिये  काफी गंभीर मसला  है .  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें