भारत को चारो ओर से घेरता
चीन
भारत ने हमेशा से दुनिया मे शांति स्थापना को
प्रधानता दी है , जिस कारण भारत को कई बार काफी महँगी कीमत चुकानी पड़ी है .भारत के
आधुनिक इतिहास का सबसे काला साल १९६२ रहा ,जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया ओर भारत
की बहुत सारी जमीन हथिया ली जो आज भी चीन
के कब्जे मे है इस घटना से भारत की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर छवि एक कमजोर देश के
रूप मे उभरी . जवाहर लाल नेहरु ने चीन पर आँख मूंद कर विश्वास किया वही दूसरी ओर माओ
ने विश्वासघात किया .उस समय के तात्कालिक
सरकार पर ये आरोप लगते रहे हैं की इस युद्ध को रोका जा सकता था .
उस समय बहुत सारी गलती हुई
,लेकिन ये ग़लत चीज़ें इतनी
हुईं कि भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन ने अपनी सरकार पर गंभीर आरोप
तक लगा दिए. उन्होंने चीन पर आसानी से विश्वास करने और वास्तविकताओं की अनदेखी के
लिए सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया .
"भारत
और चीन को एशिया में दो बड़ी सैन्य शक्ति तो माना ही जाता है, अंतरराष्ट्रीय
स्तर पर भी इन देशों को काफ़ी दमदार माना जाता है. अक्सर इन दोनों देशों की तुलना
भी की जाती है."
युद्ध के पचास साल बीत जाने
के भी भारत के संबंध चीन से बहुत ज्यादा सामान्य नही हुए हैं ,अभी भी कभी कभी सीमा
पर चीन के सैनिक सीमा उलंघन करते रहते हैं . चीन ने कश्मीर से आने वाले भारतीयों
को अलग से नत्थी करके वीजा देने की शुरुवात की ,निःसंदेह चीन भारत को अस्थिर करना
चाहता है .
भारत की भौगोलिक दशा ऐसी है की वो चारो ओर से
दुश्मनों से घिरा हुआ है . ऐसी मे सबसे बड़ा सवाल ये उभर कर सामने आता है की भारत
का सबसे बड़ा दुश्मन कौन है . किस
देश से भारत को सबसे ज्यादा खतरा है .
भारत की बड़ी आबादी पकिस्तान को अपना सबसे
बड़ा दुश्मन मानती है , परन्तु अगर राजनितिक ओर कुटनीतिक स्तर पे देखे तो चीन भारत
के लिया सबसे बड़ा खतरा बन कर उभरा है. संयोग की बात ये है की इन सब
के बावजूद हमारा सबसे ज्यादा व्यापार भी चीन से ही होता है , वो अलग बात है
की चीन की इसमें ८० फीसदी तक हिस्सेदारी है .
व्यापारिक दृष्टि से अगर देखे तो
चीन इसमें मे भी उदारीकरण के नाम पर भारत
को पंगु बनाने की कोशिश कर कर रहा है , चीन अपने देश मे निर्मित
सारे सस्ते माल को हमारे देश मे पाट
रहा है ,जबकि भारत चीन की तुलना मे
अपने माल को बेचने मे नाकाम रहा है .चीन
खासकर भारत मे अपने दोयम दर्जे के इलेक्ट्रोनिक उत्पाद को खपा रहा है , जाहिर सी
बात है आम भारतीय महेंगे उत्पाद के बदले
सस्ते चीनी उत्पाद खरीदने को वरीयता देते हैं. आजकल चीन एक सोची समझी चाल के
अंतर्गत भारत के देवी देवताओ की मूर्ति तक बेच रहा है ओर तो ओर चीन पारंपरिक बनारस
साडी उद्योग पर भी कब्ज़ा कर रहा है , जिस कारण बनारस के हथकरघा मजदुर के सामने
अपनी जीविका चलाने का संकट पैदा हो गया है . अब भारत के सामने ये चुनौती है की कैसे चीनी उत्पादों का मुकाबला
करें????
राजनितिक स्तर से देखे तो
चीन इसमें भी भारत को अस्थिर करने की कोशिश कर रहा है ,भारत के पडोसी मुल्को मे
चीन लगातार अपनी सक्रियता बढ़ा रहा है .इसमें भारत की सुस्त विदेश निति भी चीन को
काफी मदद कर रही है , हाल के दिनों मे चीन नेपाल मे भारत विरोधी ताक़तों को बढ़ाने
की साजिश कर रहा है. वहीँ दूसरी ओर
श्रीलंका मे चीन बंदरगाह ओर उद्योग स्थापित
कर रहा है . पकिस्तान
की स्थिती किसी से छिपी नही है ,चीन पकिस्तान को भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर रहा है
,पकिस्तान की अर्थव्यवस्था काफी बुरे दौर से गुजर रही है लेकिन वहां की सैन्य
शक्ति मे तेजी से इजाफा हो रहा है , इन सब के पीछे चीन का हाथ है ओर चीन पकिस्तान
को आधुनिक हथियारों से लेस कर रहा है .
सैन्य स्तर पर देखे तो चीन
ने लगातार अपनी स्थिती मजबूत की है हालांकि भारत ने भी अपनी सैन्य ताक़त इजाफा
किया है परतु अभी भी भारत चीन से सीधे सीधे टक्कर लेने की स्थिती मे नही है . हाल
के दिनों मे चीन वैश्विक स्तर पर मजबूत
देश के रूप मे उभरा है .
आइए
नज़र डालें इन दोनों देशों के मौजूदा सैन्य समीकरणों पर...
भारत
बनाम चीन
|
||
1,325,000
|
सशस्त्र
सेना
|
2,285,000
|
1,155,000
|
अनुमानित
रिजर्व सेना
|
5,10,000
|
1,301,000
|
अर्धसैनिक
बल
|
6,60,000
|
568
|
युद्धक
टैंक
|
2800
|
20
|
लड़ाकू
हेलिकॉप्टर
|
16
|
15
|
सब
मरीन
|
60
|
280
|
चौथी
पीढी के सामरिक विमान
|
747
|
784
|
लड़ाकू/ज़मीनी
लड़ाई वाले विमान
|
1669
|
0
|
अंतरमहाद्वीपीय
बैलिस्टिक मिसाइल लाँचर
|
66
|
2
|
पूर्व
चेतावनी देने वाले और नियंत्रित विमान
|
14
|
1105
|
आधुनिक
बख़्तरबंद पैदल सेना गाड़ियाँ
|
2390
|
1
|
विमानवाहक
जहाज़
|
1
|
10
|
विध्वंसक
पोत
|
13
|
11
|
छोटे
लड़ाकू जहाज़
|
65
|
भारत-चीन:
सैन्य ख़र्च
रक्षा
खर्च (अमरीकी मिलियन डॉलर में)
|
रक्षा
खर्च (अमरीकी मिलियन डॉलर में)
|
रक्षा
खर्च (प्रति व्यक्ति आय यूएस डॉलर)
|
रक्षा
खर्च (प्रति व्यक्ति आय यूएस डॉलर)
|
रक्षा
खर्च (जीडीपी के प्रतिशत पर आधारित)
|
रक्षा
खर्च (जीडीपी के प्रतिशत पर आधारित)
|
|
भारत
|
चीन
|
भारत
|
चीन
|
भारत
|
चीन
|
|
2008
|
31450
|
60187
|
28
|
46
|
2.52
|
1.33
|
2009
|
38278
|
70381
|
33
|
53
|
3.11
|
1.41
|
2010
|
30865
|
76361
|
26
|
57
|
1.89
|
1.30
|
|
|
|
|
|
|
|
अभी वैश्विक स्तर अगर चीन
को कोई चुनौती दे रहा है तो वो भारत है ,इसलिये
चीन भारत को हर मोर्चे पर विफल करना चाहता है , अभी हाल मे भारत की अमेरिका
से बढ़ती दोस्ती ने चीन को बैचैन कर दिया
है इसलिये वह पाकिस्तान ओर भारत के पडोसी
मुल्को से लगातार अपनी दोस्ती बढ़ा रहा है
.जब पिछली बार अमेरिका के राष्ट्रपति भारत आये थे तो ओबामा ने भारत के संसद मे
भाषण दिया था वही दूसरी ओर चीन ने भी
पाकिस्तान के नेशनल असेम्बली मे भाषण दिया .
ये तो तय है की चीन भारत पर सीधे तौर
पर आक्रमण नही कर सकता ,क्योंकि कोई भी परमाणु संपन्न देश किसी दुसरे परमाणु संपन्न
देश से युद्ध करने का खतरा मोल लेना नही लेना चाहेगा . पर चीन हर मोर्चे पर भारत
को चुनौती दे रहा है . दोनों देश विश्व की महाशक्ति बनने की ओर अपने कदम बढ़ा रहे
हैं . महामंदी आने के बाद चीन ओर भारत ही ऐसी देश हैं जिन्होंने अपनी अर्थव्यवस्था
को सुस्त नही होने दिया .लेकिन दोनों देश साथ मे विकास करने के बजाय एक दुसरे को
नीचा दिखने मे लगे रहते हैं , खासकर चीन भारत को एक विकासशील से विकसित देश बनते
हुआ नही देखना चाहता . चीन लगातार पकिस्तान को इसलिए भी सैन्य तौर पर मजबूत कर रहा
है की वह भारत को चुनौती पेश कर सके . पाकिस्तान मे चीन ग्वादर बंदरगाह बना रहा है
ताकि वह भारत को सैन्य स्तर पर घेर सके . चीन पाकिस्तान को परमाणु बम बनाने मे
स्पष्ट तौर पर मदद कर रहा है ओर भारत के खिलाफ चल रहे आतंकवादी गतिविधि का कभी भी
विरोध नही करता .
अभी हाल मे
ही चीन ने साऊथ चाइना सी मे अपनी दावेदारी पेश की , चीन ने भारत ओर विएतनाम के चल
रहे संयुक्त प्रोजेक्ट का जोरदार विरोध किया है . चीन लगातार अपनी सीमओं को बढ़ाने
पर लगा हुआ है ,तिब्बत मे तो वह चीनी नागरिक को बसा रहा है ,वहां लगातार बढ़ रहे
आत्मदाह के मामले के बाद भी चीन किसी की नही सुन रहा है
भारत
को जरूरत है चीन की हर चाल समझने की ,ताकि १९६२ के हालात फिर से ना दोहराया जा सके
, चीन ने तभी भारत को सैन्य स्तर पर चुनौती दी थी परन्तु इस बार चीन भारत को
आर्थिक स्तर पर चुनौती दे रहा है. लोकतंत्र के बहुत सारे फायदे हैं परन्तु
लोकतंत्र मे गठबंधन की राजनीति सही ओर कठोर निर्णय को लेने मे बाधक होती है . भारत
मे जरूरत है कम से कम विदेश नीति मे सभी दल ओर गठबंधन एक साथ सर्वसम्मति से
निर्णय ले ताकि देश की संप्रभुता पे कोई
आंच न आये .....
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