शनिवार, 30 मार्च 2013

सफ़र - आई .आई.एम.सी का.....

                                                      सफ़र-आई.आई.एम .सी का
आई .आई .एम.सी में दो तरह के लोग पढ़ने आते हैं ,एक वो जो पूरी तैयारी के साथ पत्रकार बनने के लिए आते हैं  ,एक वो जो दुर्घटनावश आ जाते हैं.दुर्घटनावश आने वालों में मै भी एक था . आई.ए.एस बनने की तमन्ना थी ,प्रतियोगिता दर्पण के हर अंक में आई.ए.एस बने हर उम्मीदवार का साक्षात्कार मै बड़े ही चाव से पढता था , इन सब को लगातार पढ़ने के बाद मन में ये बैठ गया कि अगर सिविल सेवा की तैयारी करनी है  तो कोई अच्छा विकल्प तलाशना होगा . छोटे मोटे सरकारी नौकरी में  जाने का मेरा बिल्कुल भी मन नहीं था . दूसरा मेरे मन में किसी बड़े प्रतिष्ठित संस्थान में पढ़ने की इक्छा  जोर –जोर से  हिलोरे मार रही थी . इसी की तलाश में मै बी.एच .यु भी गया ,पर मुझे वो चीज़ नहीं मिला ,जिसकी मै तलाश कर रहा था.


                     आई .आई.एम.सी में दाखिले के लिये मैंने हिंदी जर्नलिज्म के आलावा एड एंड पी .आर का भी फॉर्म भरा था ,तभी मेरे अन्दर बस यही सोच थी कि कैसे भी आई.आई एम.सी में बस दाखिला मिल जाये. मेरा लगातार प्रतियोगिता दर्पण पढ़ना काम आया और दोनों कोर्सों के लिए लिखित परीक्षा में मेरा चयन हो गया. हिंदी पत्रकारिता में खराब साक्षात्कार होने के बाद भी मै चुना लिया गया . इसी को मै अपनी लाइफ का टर्निंग पॉइंट मानता हूँ .
                    आई.आई एम.सी, खासकर हिंदी पत्रकारिता विभाग मानवीय संवेदना को लेकर काफी गंभीर है .मै खुद भी दयालु और संवेदनशील किस्म का इंसान हूँ, इसलिए मुझपर इस कक्षा का,आनंद सर और भूपेन सर का गहरा असर पड़ा .विचारधारा को लेकर शुरू में मुझे काफी दिक्कतें आई,दिक्कतें अभी भी हैं,पर धीरे धीरे चीजों को मैंने भी समझना शुरू किया .कक्षा में गरीबों,पिछड़ों की बातें ,समाज ,मीडिया में हो रहे शोषण की बातों ने मुझपर गहरा असर डाला है .जे.एन.यू कैम्पस आते हीं हर जगह वामपंथ और वामपंथ की बातें सुनने को मिली. वामपंथ विचारधारा से जुड़े  लोग खुद अपनी और अपनी विचारधारा का महिमामंडन करते पाये गए .शुरुवात में लगा कि पता नहीं ,मै कहाँ आ गया ? पर आनंद सर कि एक बात मेरे दिमाग में घर कर गयी  की ‘किसी भी चीज़ को पूर्णतया काला या पूर्णतया गोरा करके नहीं देखना चाहिए' . खुद मेरा मानना है कि जो  चीज़ बहुत अच्छी है ,उसमें भी कोई न कोई खराबी जरुर होती है और जो चीज़ बहुत खराब है उसमें भी कोई न कोई अच्छाई जरुर होती है.
                        कक्षा में सुबह ९ बजे की चर्चाएँ काफी रोचक होती थी ,पर उसमें छात्रों की कम उपस्थिति जोश कम करने वाली होती थी .यहाँ आने के बाद मुझे कई विचारवान दोस्त मिलें,जिनका साथ जीवन भर रहेगा ,यहाँ आने के बाद यह समझने का मौका भी मिला कि  एक हीं चीज़ को अलग –अलग तरीकों से कैसे सोचा जा सकता है.कई मायनों में आई.आई.एम.सी का हिंदी पत्रकारिता  विभाग यहाँ के अन्य विभागों से काफी अलग है .इस कक्षा में ऐसे लोग भी आते हैं जो कई मायनों में अपनी जिन्दगी हाशिये में जी रहे होते हैं . ऐसे छात्रों को आगे आते देखना काफी सुखद होता है . परन्तु कई बार क्लास और क्लास से बाहर भी मुझे ऐसा लगा ,कई छात्र ऐसे छात्रों को आगे बढ़ता देख उनकी तरक्की को पचा नहीं पा रहें हैं ,यह काफी चिंताजनक स्तिथी है .कम से कम ऐसे संस्थानों में आकर इस तरह की सोच से बाहर निकलना चाहिए . और बैचेज का तो पता नहीं पर हमारे बैच में दलित और स्त्री विमर्श दोनों पर खूब विरोध और सकारात्मक चर्चाएँ हुई,इस चीज़ को मै,अपने बैच कि सबसे बड़ी खासियत मानता हूँ.समाज के बेहतरी और बदलाव में,हम सभी छात्र अब सकारात्मक योगदान दें सकते हैं,ऐसा मेरा विश्वास है .
                       रही बात मेरी और पत्रकारिता की पढाई कि तो फिलहाल मैं क्या करूं क्या न करूं वाली स्तिथी में हूँ .नवभारत टाइम्स और हिन्दुस्तान में लिखित परीक्षा में चयन होने के बावजूद अंतिम रूप से नहीं चुना जाना मेरे लिए थोडा निराशाजनक रहा,खासकर हिन्दुस्तान में लिखित परीक्षा और जी.डी. मिलाकर दूसरा स्थान पाने के बावजूद भी अंतिम चयन नहीं होना थोड़ा चौकाने वाला जरुर रहा .इसलिए इन दिनों मैं अपनी कमियों को टटोलने में व्यस्त हूँ.हो सकता है , या तो मुझमें कमी रही होगी या फिर मैं उनके बिजनेस मॉडल में फिट नहीं बैठ रहा होऊंगा .खैर ,जो भी हो ,मेरे लिए ये कोई बड़ा मुद्दा नहीं है .मेरे आशावादी मन का मानना है की दुनिया में अवसर असीमित हैं,जरूरत है चौकन्नें रह कर उस अवसर को पहचाननें कि .
                       रही बात आई.आई.एम.सी में पत्रकारिता की पढाई कि तो और कई लोगों की तरह मेरा भी यही मानना है की दुनिया का कोई भी संस्थान नौ महीने में आपको पत्रकार नहीं बना सकता ,अगर आपके अन्दर पत्रकारिता का कीड़ा पहले से नहीं हैं ,लिखने –पढ़ने का शौक नहीं है ,आपके अन्दर मानवीय संवेदना नहीं है , तो फिर आप मशीनी पत्रकार बनके रह जायेंगे .ऐसा पत्रकार पैसा तो बहुत कमा  सकता है ,मगर देश-समाज को देनें के लिए उसके पास कुछ ना होगा. मेरा मानना है ,आई .आई एम .सी का हिंदी पत्रकारिता विभाग अच्छे सवेंदेंशील पत्रकारों कि फ़ौज खड़ा करने में सफल रहा है . ऐसे पत्रकार ,हो सकता है,आज की कोर्पोरट कल्चर मीडिया में ज्यादा सराहे न जाये,पर अपने आस पास ,अपने समाज ,अपने निजी जिंदगी में जरुर सराहा जायेगा . जो भी नये बच्चे यहाँ आना चाहते हैं,उनसे मै बस यही कहूँगा कि अगर वो सिर्फ पैसा कमाने के लिए यहाँ आना चाहते हैं,तो इसके लिए ढेर सारे संस्थान भारत में मौजूद है. और अगर सच में पत्रकारिता का जुनून है ,और अच्छे सवेंदनशील पत्रकार बनना चाहते हैं तो मेरा दावा है आई.आई एम.सी का हिंदी पत्रकारिता विभाग आपको बेहतर पत्रकार हीं नहीं वरन बेहतर इंसान बनाने का भी माद्दा रखता है .
                        ऐसी भी बात नहीं है की आई.आई एम .सी में मेरे साथ सबकुछ अच्छा हीं हुआ .यहाँ लड़कों के लिए हॉस्टल का न होना ,एक अभिशाप कि तरह है .खासकर हिंदी पत्रकारिता विभाग में ऐसे लड़के आतें हैं जिनके लिए दिल्ली जैसे शहर में रेंट पर रूम लेकर रहना काफी कठिन होता है,हॉस्टल ना होने की वजह से खाना खाने की समस्या उभर कर सामने आती है ,आई.आई.एम.सी जैसे हरे-भरे जगह से जब छात्र मुनिरका जैसी जगह में रहने जाते हैं,तो संकरे रास्ते और अंधेरे रूम मानसिक दशा को संकुचित करने का काम करते हैं.दूसरी बात ,ये सच है कि ,मै पहले सा अब बेबाक होकर लिखने लगा हूँ.पर समय कम होने के कारण पढ़ने की आदत बहुत कम हो गयी ,इस बात का मुझे बेहद मलाल रहेगा . अब तर्क देने वाले ये जरुर कहेंगे कि ,सभी के पास चौबीस घंटें हीं होते हैं,तुम्हारे लिए टाईम कोई अलग से नहीं आएगा ,वगैरह,वगैरह . पर सुबह नौ बजे से शाम पांच बजे तक क्लास के बाद ,फिर दोस्तों के साथ बातचीत वगैरह के बाद जब रात के नौ बजे आप घर जातें हैं तो फिर किताब निकाल के पढ़ पाना बड़ा कठिन होता है .आई.आई.एम.सी की अच्छी –भली लाइब्रेरी का मै इस्तेमाल सही ढंग से नही कर पाया ,इस बात का भी मलाल रहेगा .
                        खैर ,आनंद प्रधान सर के लेक्चर ,भूपेन सर कि काम की बातें, कृष्ण सर की शुद्धिकरण की कक्षाएं, हमारे गेस्ट फैकल्टी सत्येन्द्र सर कि राजनीति ,अन्नू आनंद मेम की विकास पत्रकारिता,अमिय मोहन की स्क्रिप्ट राइटिंग ,अमरेन्द्र किशोर सर का पर्यावरण,दिलीप मंडल सर कि जिंदगी को 72 साइज़ फॉण्ट में देखने की कला,पाणिनि आनंद कि वेब पत्रकारिता,राजेश जोशी की मंजरकशी इत्यादि कि ज्ञान कि बातों ने किताब कम पढ़ पाने के दर्द को जरुर कम किया .
राहुल आनंद
                            
                                  

                               


2 टिप्‍पणियां:

  1. "...आई.आई एम.सी का हिंदी पत्रकारिता विभाग आपको बेहतर पत्रकार हीं नहीं वरन बेहतर इंसान बनाने का भी माद्दा रखता है..."सौ प्रतिशत सही है,
    सुपर्ब राहुल जी गज़ब लिखा हैं आपने ....

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