दिल्ली स्टेशन |
ट्रेन धीरे-धीरे अपने रफ़्तार से चल रही थी . उस दिन काफी घना कोहरा था , मै अपने भांजों के साथ इलाहबाद अपनी दीदी के घर जा रहा था. ट्रेन के ९ घंटे देरी से आने के बावजूद भी मेरा उत्साह कम नही हुआ. मुझे १२ वर्ष बाद हो रहे कुम्भ मेले में इलाहबाद जाना था ,घूमना तो उद्देश्य था ही साथ-साथ मै ये भी जानना चाहता था की आखिर लोग कुम्भ के मेले में खो क्यों जाते हैं ? बचपन से ही इस चीज़ को फिल्मों में देखते-देखते मन में एक बच्चो जैसी अभिलाषा जाग उठी की आखिर वहां किस तरह की भीड़ होती है की लोग खो जाते हैं?
एक सात वर्षीय लड़की जो नीली कुर्ती पहनी हुई है, अपना नाम जुली बता रही है ,जो आरा बिहार से है ,माँ का नाम कुंती देवी है , कृप्या इस बच्ची को उसके अभिवावक जेट ब्रिज के सामने खोया-पाया विभाग से ले जाये। मेले में घुसते हीं सबसे पहले हमें यही आवाज सुनाई दी . हम सभी एक–दुसरे को देख कर हंसने लगे, कुछ देर बाद मेरे भांजे ने मुझे देखकर हँसते हुए कहा कि कुम्भ के मेले में आज भी खोने का सिलसिला अनवरत जारी है .सरकार ने कुम्भ मेले जैसे बड़े आयोजन के अनुसार हीं वहां सुरक्षा व्यवस्था का अच्छा इंतजाम कर रखा था .रेलवे स्टेशन के पास से हीं सुरक्षा व्यवस्था के अच्छे इंतजाम थे.मैं इलाहबाद में अपनी दीदी के यहाँ एयरफोर्स कैंप में ठहरा हुआ था ,१३ कि.मी. दूर कुम्भ जाने के लिए सरकार ने वहां से हि व्यवस्था कर रखी थी।
जाम और सुरक्षा कारणों से बस ने हमे कुम्भ से ४ कि.मी. पहले हीं उतार दिया , मेरे जैसे आरामपसंद आदमी के लिए यह यह कतई अच्छी बात नही थी,पर वहां का माहौल हीं ऐसा था की पता ही नहीं चला कि कैसे ४ कि.मी. निकल गये और हम कुम्भ के मुख्य गेट तक पहुँच गये ,जैसा की मैंने पहले हीं वर्णन कया है की मेरे पूर्वानुमान के मुताबिक ही वहां पहुँचते हीं मुझे लोगों की खोने की आवाज सुनाई देने लगी , वैसे तो कुम्भ आने के दौरान हीं सरकारी पोस्टर के अलावा विभिन्न आखाडो के बड़े-बड़े पोस्टर लगे हुए थे ,लेकिन कुम्भ के मुख्य गेट पहुँचते हीं अखाङो,हिन्दू धार्मिक संस्थानों और विभिन्न गुरुओं की विभिन्न जगहों पर पोस्टरों की भरमार लगी हुई थी।
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नागा साधु |
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पिपा पुल |
आगे बढ़ने पर हमे बहुत सारी गले में पहनने वाली जंतर युक्त मालाओं की दुकान मिली .जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे थे ,हमारी थकावट बढती जा रही थी , मेले के अंदर आने के करीब एक घंटे बाद भी हम नहाने की जगह तक नहीं पहुँच पाए थे। अब मन कर रहा था कि जल्दी से जल्दी संगम में डूबकी लगा कर अपनी थकान को मिटाया जाये . चलते-चलते आखिरकार हम संगम किनारे गंग्नम करने पहुँच हीं गये , वहां भी पुलिस की कड़ी व्यवस्था थी, भीड़ होने के कारण लोगों को जल्दी जल्दी नहाने के लिए कहा जा रहा था .जैसे हीं मै अपने भांजे के साथ नहाने उतरा तो पानी उम्मीद के मुताबिक काफी ठंडा था ,दीदी के द्वारा कहा गया की कैसे भी हो पांच डूबकी तो लगाना हीं है ,सो हमने नाक-कान बंद किया और लगा दी डुबकी, हर-हर गंगे बोलकर , पर पानी इतना गन्दा था की लगा की हम शुद्ध हो रहें हैं या अशुद्ध .हालाकि हम जहाँ नहा रहे थे वह वास्तविक संगम(गंगा,यमुना और अदृश्य सरस्वती नदी ) से काफी दूर था ,प्रशासन द्वारा वहां जाने की सख्त मनाही थी , लेकिन यह मनाही अति विशेष लोगों के लिए नहीं थी .प्रशासन का कहना है की उस जगह पानी काफी गहरा है।
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संगम में डुबकी |
खैर जो भी हो, हमसभी ने बारी-बारी से अपने ही तरीके से शाही स्नान किया।नहाते वक़्त मैंने देखा की एक अधेर उमर की महिला भी नहाना चाह रही हैं ,लेकिन पानी को देख कर डर रही थी,वहीँ पास मौजूद उन्होंने अपने बेटे से बार बार अनुरोध किया की उन्हें पकड़ कर नहला दे ,पर उनका बेटा वहां से टस से मस नहीं हुआ .मुझे ये देखकर काफी दुख हुआ की आखिर कोई बेटा अपनी माँ के प्रति इतना असंवेदनशील शील कैसे हो सकता है??? फिर हम लोगों ने नहाने में उनकी मदद की। नहाने के बाद सच में हमारी थकान जाती रही .
अब ये तो पता नही की कुम्भ में नहाने के बाद सच में पूण्य मिलता है या ये सिर्फ हमारे धार्मिक गुरुओं की मन की बातें हैं .पर हम सभी थकान से मुक्त हो गये और मेरी दीदी ने कहा देखा मैंने तुम्हे कहा था न की कुम्भ में नहाने से जरुर फायदा होता है। दीदी ने फिर कहा ,चलो तुम्हारा क्लास छोड़ के दिल्ली से इलाहबाद आना सफल हो गया .दीदी की इस बात पर हम सभी हंस पड़े। नहाने के बाद हम सभी वहीँ रखे हुए सूखे घास के पास बैठ गये ,पर कुछ ही देर में वहां महिला पुलिस आई और हमे वहां से भीड़ बढ़ने का हवाला देकर उठने के लिए कहने लगी। हम वैसे भी अब कुछ देर में जाने वाले थे इसलिए उनसे बिना कोई विरोध जताए ,हम वहां से आगे बढ़ गये।
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गौधूली बेला |
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कुम्भ में शांम का नजारा |
क्योंकि अँधेरा होने में अभी वक़्त था और हमें अब भूख भी लग रही थी ,इसलिए हम खाने वाले पंडाल की तरफ़ बढ़ने लगे . वहां पहुँचा तो पाया की हर मेले की तरह यहाँ भी सभी चीजों के दाम दोगुने और तिगुने बढ़े हुए हैं। फिर भी भूख तो लगी थी और कुछ नया भी टेस्ट करना था।मेरे जीजाजी जो यहाँ पहले भी आ चूके थे,उन्होंने कहा की यहाँ की जलेबी काफी अच्छी होती है।वैसे भी जेलेबी कथित राष्ट्रीय मिठाई के साथ-साथ मेरा फेवरेट मिठाई भी है .इसलिये मैं खुद अपने से जेलेबी लेने गया और हम सभी ने बड़े चाव से इसे खाया .उसके बाद हम सभी ने समौसे वगैरह खाए और तब तक लगभग शांम हो चुकी थी . कुम्भ मेले में सचमुच शांम का नजारा बेहतरीन होता है ,जब हम घर जाने के लिए रोड पर उपर जाने लगे तो वहां से कुम्भ का नजारा सचमुच काफी विहंगम था , चारों और भव्य पंडाल और उसमे बेहतरीन लाईट मेले की शोभा को बढ़ा रही थी।
कुम्भ से लौटकर जब मै घर पहुंचा तो वहां के अनुभवों को समेट कर मैं बहुत खुश था ,परन्तु एक बात जो मेरे मन में बार-बार खटक रही थी . मैं जब कुम्भ में पंडालों के बीच से जा रहा था तो एक पंडाल के पास जहाँ लोग एक बाबा को सुन रहें थे और उनकी दान पेटी में अपनी अपने मन से रूपये-पैसे दे रहें थे वहीँ दूसरी और उनकी हीं पंडाल के बाहर एक कुष्ठ रोग से ग्रसित भिखारी लोगों से भीख मांग रहा था ,लेकिन लोग उसे पैसे देना तो दूर उसकी तरफ देख भी नहीं रहे थे .ये देखकर मुझे काफी दुःख हुआ और मेले में घुमने के दौरान भी ये दृश्य बार-बार मेरे दिमाग में घूमता रहा।कई दिनों तक इस दृश्य के बारें में सोचकर मैं काफी परेशान रहा . अभी हाल में कुम्भ यात्रियों के साथ हुए दुर्घटना ने मुझे और भी सोचने पर मजबूर कर दिया की धर्म,आस्था तो ठीक है ,पर ये कैसी आस्था है जो की लोगों के जान तक ले लेती है ,ये कैसी आस्था है की जो बाबाओं की झोली तो भरना चाहती है मगर कुष्ठ से तड़प रहे भिखारी की नहीं ???
इसे कहते हैं- कुम्भ से सीधा प्रसारण
जवाब देंहटाएंrahul congrats for your kumbh visit.this story is very intresting you wrote very well.tum kar dikhawoge.....
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